ब्यूरो चीफ,
रांची: झारखंड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन में पदधारियों की अनुशंसा से ही सदस्य बन रहे हैं. नियमों की बातें तो दूर, जिसका ढोल वही उसे बजाये, वाली कहावत चरितार्थ होती है. राजधानी रांची समेत झारखंड में क्रिकेट को पहचान दिलानेवाले स्तंभों का अब जेएससीए से नाता नहीं है. पदधारियों के इगो प्रॉबल्म ने इनका पत्ता ही कटवा दिया. ऐसे में हैं सीसीएल के बड़ी हस्ती रहे देवल सहाय, जिन्होंने महेंद्र सिंह धौनी जैसे खिलाड़ियों को रांची से नेशनल फ्रेम तक पहुंचाया. उन्हें ही जेएससीए के पदधारियों ने बाहर का रास्ता दिखला दिया. हाल ही में जेएससीए की नयी कार्यकारिणी का चुनाव हुआ. इसमें वोटर लिस्ट के अनुसार 653 आजीवन सदस्य और 87 मान्यताप्राप्त सदस्यों की सूची दी गयी थी. शुरुआत से अब तक लगभग 550 सदस्य बनाये गए और 350 से अधिक हटा दिये गए. अगर मेम्बर रजिस्टर की पूरी पड़ताल हो की किस सदस्य का कब ड्राफ्ट जमा हुआ है तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.
कई नामचीनों को बाहर का रास्ता दिखलाया गया
जेएससीए से कई नामचीन लोगों को बाहर का रास्ता दिखलाया गया. इसमें आइपीएस आलोक राज, आइपीएस प्रवीण सिंह (अब स्वर्गीय), पीएन शंकरन, रमेश सक्सेना (अब स्वर्गीय), जीतू पटेल, सुनील सिंह, पी शशिधरण, प्रवीण चंद्र देवघरिया और झारखंड रणजी टीम के कोच रहे के.बी.पी राव प्रमुख हैं.
प्रत्येक वर्ष सदस्यों की संख्या पर भी गौर करना जरूरी
2003-04 में आजीवन सदस्यों की संख्या 186 थी. जबकि वार्षिक सदस्य 296 थे. इसके अलावा मान्यता प्राप्त सदस्यों की संख्या 112 थी. 2003-04 में सदस्यों की कुल संख्या 594 थी. 2004-05 में आजीवन सदस्य 602 थे. इसमें वार्षिक सदस्य 260 मान्यताप्राप्त 93 सदस्य थे. कुल सदस्यों की संख्या बढ़ कर 955 हो गयी थी. 15 अगस्त 2004 को एक प्रस्ताव पारित किया गया कि 211 जिला संघ को 20 सदस्य अपने जिला से बनाया जाये. इसमें 420 सदस्य मनमौजी तरीके से बनाये गये. किसी-किसी जिला संघ से एक भी स्थानीय लोग सदस्य नहीं बन पाये. झारखंड में सबसे ज्यादा रांची से सदस्य बने जो पदधारियों के काफी करीबी माने जाते थे. जमशेदपुर से भी कुछ सदस्य बनाये गए जो इनके करीबी थे. कई दूसरे लोगों के ड्राफ्ट पर इनके अधीन के लोग सदस्य बन गये, जिसमें परिवारवाद हावी रहा. इन्हीं 420 सदस्यों की शक्ति के बल पर 2006 में हेवीवैट उम्मीदवार और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो को हार का मुंह देखना पड़ा. अब इस चुनाव में जीतने के बाद सदस्यों को निकालने और चुनौतियों को समाप्त करने का खेल शुरू हुआ.
जमशेदपुर मुख्यालय से बाहर विशेष आम बैठक/ वार्षिक आम बैठक एक साथ बुलाये गये. दोनों बैठक में मात्र आधे घंटे का अंतर रहता था और उपस्थिति एक होती थी. इसी बैठक में लगातार संविधान संशोधन किया जाने लगा, जिसकी स्वीकृति महानिरीक्षक निबंधन से कभी नहीं ली गयी. सुदेश महतो को रोकने के लिए जमशेदपुर के लिए अलग-अलग नियम पारित कराया गया. यह नियम बनाया गया कि जमशेदपुर के क्लब के वहीं अध्यक्ष/ सचिव बन सकते हैं जो वहां के स्थानीय निवासी हैं. सुदेश महतो वहां के क्लब के अध्यक्ष बनकर चुनाव लड़े थे. उन्हें आजीवन सदस्य भी नहीं बनाया गया.
दूसरा नियम यह बनया गया कि जो पांच एजीएम में उपस्थित नहीं होगा उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी. वार्षिक सदस्यता शुल्क 30 रुपये था जिसे एडवांस में लेने से मना कर दिया गया. सिर्फ एक फिक्स्ड डेट में लेने का प्रावधान बना कर उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गयी. यह नियम भी बना कि मान्यता प्राप्त सदस्यों के अध्यक्ष/सचिव जो लगातार पांच वर्षों से रहे हो और वर्तमान में भी हैं वहीं चुनाव के लिए योग्य हैं. किसी की सदस्यता यदि राज्य संघ ने समाप्त कर दी तो वह राज्य के किसी भी मान्यता प्राप्त संघ में सदस्य नहीं रह सकता है.
चुनाव में चुनौती देनेवाले या किसी प्रकार के प्रश्न खड़ा करने वाले सदस्यों को एक नियम मिसकंडक्ट-31 लगाकर समाप्त कर दिया गया. उनको नैचुरल जस्टिस के तहत जवाब देने का मौका भी नहीं दिया गया. जेएससीए के संविधान में 40 से अधिक संशोधन कर दिये गये. इसकी स्वीकृति झारखंड सरकार के महानिरीक्षक निबंधन से नहीं ली गयी. सरकारी पद पर रहते हुए सोसाईटी एक्ट का उल्लंघन करते रहे किसी ने जवाब नहीं मांगा. कुछ सदस्यों से आई कार्ड रिन्यूअल कराने हेतू मांगा गया और वापस नहीं कर सदस्यता लिस्ट से नाम डिलीट कर दिया गया है.