दीपक
रांची: बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के लिए अधिगृहित की जानेवाली जमीन में गड़बड़ी 17 वर्ष बाद साबित हुई है. अपर न्यायायुक्त 14 विशाल श्रीवास्तव की अदालत ने टाइटल शूट 04/2004 और प्रोबेट याचिका 35/2002 की सुनवाई के बाद यह फैसला दिया है. 27 सितंबर 2019 को दिये गये फैसले में अदालत ने स्पष्ट कहा है कि जिला प्रशासन हेथु गांव, मौजा नामकुम के खाता संख्या 30, खेवट संख्या 3 के आठ प्लाट 834, 1301, 1299, 1298, 1202, 1195, 1156 और 543 के 4.81 एकड़ जमीन की बिक्री गलत तरीके से की गयी है.
जमीन की बिक्री मे प्रोबेट होल्डर पीएन सिंह की किसी तरह की राय नहीं ली गयी है, जो एक हिस्से के मालिक भी हैं. इस फैसले की गाज कई लोगों पर गिरेगी. रांची के तत्कालीन एलआरडीसी शैलेंद्र भूषण ने भी अपने दो बेटों के नाम पर इस प्लाट में से 70 डिसमिल जमीन खरीदी थी. इसमें उन्होंने जिला प्रशासन से 70 लाख से अधिक के मुआवजे का दावा भी किया था. इतना ही नहीं रुक्मिनी देवी और उर्मिला देवी ने नामकुम अंचल के तत्कालीन हल्का कर्मचारी शशि भूषण सिंह के साथ मिल कर इसी खेवट की जमीन में से 1.25 करोड़ रुपये का मुआवजा भी ले लिया है. जिस पर लोकायुक्त कार्यालय और झारखंड हाईकोर्ट में एक मामला विचाराधीन है. इसके अलावा दर्जनों लोगों को भी मुआवजे की राशि लौटानी पड़ेगी, जिन्होंने गलत तरीके से जमीन खरीदी है और जिला प्रशासन से मुआवजा प्राप्त किया है.
क्या है अदालत के फैसले में
गांव के तत्कालीन मुखिया बुधू सिंह के उत्तराधिकारियों में से रूक्मिनी देवी, उर्मिला देवी, मनसा सिंह, मनतोरनी देवी ने वास्तविक विल के हकदार पीएन सिंह से जमीन की बिक्री अथवा मुआवजे से संबंधित मामले में किसी प्रकार की राय नहीं ली. जमीन बेचनेवालों ने बुधू सिंह का फर्जी विल भी बनवाया, जिसे अदालत एक सिरे से खारिज करती है. बुधू सिंह (स्वर्गीय) ने 18.7.1972 को विल एग्जीक्यूट किया था. जिसके तहत अंचल कार्यालय नामकुम को प्रोबेट सर्टिफिकेट भी निर्गत करना चाहिए था, जो नहीं किया गया. अदालत ने जिला प्रशासन से जीवित उत्तराधिकारी पीएन सिंह के नाम से प्रोबेट सर्टिफिकेट जारी करने का निर्देश दिया है.
हाईकोर्ट ने एलपीए 154 ऑफ 2015 में निचली अदालत को दिया था आदेश
झारखंड हाईकोर्ट ने निचली अदालत को प्रोबेट के मामले पर फैसला देने का निर्देश दिया था. न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीएन पटेल और जस्टिस अमिताभ कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने एलपीए 154 ऑफ 2015 में निचली अदालत से कहा था कि वह प्रोबेट पर अंतिम निर्णय लेते हुए हाईकोर्ट को सूचित करे. एक अक्तूबर 2018 को खंडपीठ ने मामला निचली अदालत को ट्रांसफर किया था.