ब्यूरो चीफ,
रांची: पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा ने अपने सुझावों के बाबत क्रिकेट संगठनों द्वारा नहीं किये गये सुधार को काफी गंभीरता से लिया है. आउटलूक मैग्जीन में उन्होंने क्रिकेट संगठनों और प्रबंधन की तीखी आलोचना की है. उन्होंने मानना है कि क्रिकेट में सुधार की आत्मा अब गंदी हो गयी है. सर्वोच्च न्यायालय ने जस्टिस लोढ़ा की अध्यक्षता में क्रिकेट में सुधार को लेकर एक समिति बनायी थी. जस्टिस लोढ़ा की सिफारिशों के आधार पर सभी राज्यों के क्रिकेट एसोसिएशनों को इस बाबत संविधान में सुधार कर नयी कार्यकारिणी का गठन करना था. इसके अलावा सदस्यों की सूची भी सौंपनी थी. सांगठनिक ढ़ांचे में बदलाव के लिए भी जस्टिस लोढ़ा ने सिफारिश की थी कि कैसे खेल को बढ़ावा देने के लिए स्पोर्ट्स पर्सन को विशेष जवाबदेही सौंपी जाये.
साक्षात्कार के क्रम में उन्होंने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों के क्रिकेट संगठनों, एसोसिएशनों में एकाधिकार (मोनोपोली) को समाप्त करने के लिए सुधार जरूरी थी. इससे वर्षों से क्रिकेट खेल संगठनों में वर्चस्व की समाप्ति होती है. एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करने की कोशिश की गयी थी ताकि संगठन में शामिल पदधारियों के चहेतों, बेटे, बेटियों, रिश्तेदारों को डिस्क्वालिफाई किया जा सके.
ऐसे लोगों ने क्रिकेट संगठनों पर अपना एकाधिकार कायम कर रखा था, जिस पर लगाम लगाये जाने की बातें सुधार कार्यक्रम में कही गयी थीं. उनका मानना है कि जिंदगी में कई ऐसे मोड़ आते हैं, जहां परिवार का नियंत्रण बरकरार रहता है, चाहे वह राजनीति हो, बड़े औद्योगिक घराने हों अथवा स्पोर्टस प्रबंधन. उनका कहना है कि क्रिकेट संगठनों को संचालित करनेवाले पदधारियों की माइंडसेट की वजह से ही ऐसा हो रहा है, जिसका खामियाजा किक्रेट जैसा खेल भुगत रहा है. कई राज्यों में यह देखा गया कि पदधारियों के बेटे, भाई, बहन, बेटियां और अध्यक्ष के नजदीकी निर्विरोध रूप से निर्वाचित हो जा रहे हैं. इससे खेल में सुधार की कार्रवाई प्रभावित हो रही है. कई क्रिकेट संगठनों को सुधार के लिए बार-बार पत्र लिखे गये. पर प्रोक्सी प्रावधानों का हवाला देकर राज्य के क्रिकेट संघों ने समिति को ही गुमराह करने की कोशिश की.
वर्तमान में राज्य क्रिकेट संगठनों की मनमानियां बेकाबू हो गयी हैं. कुछ एसोसिएशनों को छोड़ बाकी में गंदगी बरकरार है. ऐसे एसोसिएशन में पुराने अध्यक्ष ही नियंत्री पदाधिकारी बन कर सब कुछ नियंत्रित कर रहे हैं. बाकी के पदधारी कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं. ऐसे राज्यों के क्रिकेट संगठनों के पूर्व अध्यक्षों का मानना है कि राज्य का क्रिकेट एसोसिएशन उनकी बेबी की तरह है, जिसे वे वर्षों से देखरेख कर रहे हैं. रूल ऑफ लॉ के आगे कुछ नहीं है. ऐसे लोग ही क्रिकेट में लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं करना चाहते हैं.
मेरा सुझाव था कि एक यूनिफॉर्म स्ट्रक्चर बनाया जाये. सभी राज्यों के क्रिकेट संगठनों को बीसीसीआई द्वारा तय गाइडलाइन के अनुरूप प्रबंधन, गवर्नेंस और प्रशासनिक क्षमता का निर्वहन करना चाहिए. इसमें एक राज्य एक वोट, एपेक्स काउंसिल का गठन, कूलिंग ऑफ पीरियड जैसी बातें भी शामिल थीं. पर कई सुधार के कार्यक्रमों को तवज्जों ही नहीं दी गयी. मैं इसके बिल्कुल खिलाफ था कि क्रिकेट संगठनों में परिवारवाद को बढ़ावा मिले. इन लोगों की सदस्यता समाप्त कर देनी चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय ने बीसीसीआई में नौ सदस्यीय एपेक्स काउंसिल बनाने की बातें भी कही थीं. 23 अक्तूबर को पोस्ट रीफोर्म इलेक्शन हो रहे हैं. अब तक सुधारों के लिए तीन वर्ष बीत गये. बीसीसीआई के संविधान में बदलाव हुए हैं. राज्यों के क्रिकेट संघों को भी अपने संविधान में बदलाव करना पड़ रहा है. अब राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई के दैनिंदिन प्रबंधन और गवर्नेंस के बदलने की जरूरत है. सेवानिवृत क्रेकेटरों को एक अलग प्लैटफार्म आईसीए मिल रहा है.