ब्यूरो चीफ,
रांची: राज्यसभा सांसद समीर उरांव ने कहा है कि केंद्रीय सरना समिति जैसे सामाजिक संगठनों को राष्ट्र के प्रति चिंतन करते हुए जवाबदेह बनना चाहिए. उन्होंने कहा कि जनजातीय समुदाय पर जब कभी कोई आंच आयेगी, तो उसका डट कर सामना करना चाहिए. एक सांसद होने के नाते इस समुदाय की आवाज को मैं सदन में बुलंद करुंगा. राजधानी के मोरहाबादी में आयोजित केंद्रीय सरना पूजा समिति के कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करते हुए राज्यसभा सांसद ने कहा कि देश भर में 12 करोड़ जनजातीय आबादी रहती है. इसमें 710 जातियां और 107 धर्म माननेवाले जनजातीय समुदाय हैं. जनजातीय समुदाय अपने विश्वास के आधार पर देवी देवताओं पर आस्था और भरोसा करते हैं. इसी को भारतीय संविधान में रीति-रिवाज, सिस्टम व कस्टम या कस्टमरी लॉ के रूप में संरक्षित करते हैं.
सम्मेलन को संबोधित करते हुए समिति के संरक्षक बिरसा पाहन ने कहा कि आदिवासियों की पहचान सरना, मसना, अखड़ा, पाहन, पईन, भोरा, बैगा तथा उनके रीति रिवाज हैं. राज्य में जनजातीय समुदाय का शोषण हो रहा है. इसकी जांच की आवश्यकता है. राम सहाय मुंडा ने कहा कि जनजातीय समुदाय को अपने पूर्वजों द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलने की आवश्यकता है. अपनी भाषा और संस्कृति से प्यार करते हुए उसे भूलने की जरूरत नहीं है. हमारी संस्कृति और भाषा ही हमारी पहचान है. हमारी पहचान पर किसी तरह का हमला बरदाश्त नहीं किया जायेगा. धुर्वा सरना समिति के मेधा उरांव ने कहा कि झारखंड में धर्म परिवर्तन काफी व्यापक तौर तरीके पर हो रहा है. राज्य में धर्म स्वतंत्रता विधेयक 2017 लागू है, फिर भी इसका घोर उल्लंघन हो रहा है. राष्ट्र विरोधी ताकतें इसमें शामिल हैं.
इस नियम का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए तथा धर्म परिवर्तन कर आदिवासी बननेवालों पर विशेष नजर रखी जानी चाहिए. सुनील टोप्पो ने कहा कि हमारी जमीन को संरक्षित करने के लिए सीएनटी, एसपीटी जैसे सख्त कानून भी बने हैं. फिर भी इसका व्यापक दुरुपयोग हो रहा है. संताल परगना में 15 हजार एकड़ जमीन, छोटानागपुर में 22 हजार एकड़ जमीन हड़पने का काम किया गया है. अध्यक्षता करते हुए जगलाल पाहन ने कहा कि प्रत्येक गांव और मौजा में सामाजिक औऱ धार्मिक व्यवस्था के संचालन के लिए जनजातीय समुदाय को और जागरुक होना होगा. कुछ तथाकथित लोगों द्वारा सामाजिक संगठन बना कर पूर्वजों द्वारा सदियों से चल रहे विधि विधान को बदलना चाहते हैं. विकृत करना चाहते हैं. इसलिए समाज के लोगों को एकजुट रहने की आवश्यकता है. सम्मेलन को रोशनी खलखो, गंदूरा उरांव, आरती कुजूर और अन्य ने भी संबोधित किया.