दीपक
रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव का अखाड़ा तैयार हो गया है. चुनाव की तारीखें घोषित हो चुकी है. तीन दिन बाद पहले चरण की 13 सीटों के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी. लेकिन एनडीए और यूपीए में रार बरकरार है. वहीं क्षेत्रीय दल एकला चलो की राह पर निकल पड़े हैं. क्षेत्रीय दल झारखंड मुक्ति मोर्चा, आजसू, झारखंड विकास मोर्चा, झारखंड पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और अन्य झारखंड नामधारी दल अब तक चुनावी नैया पार करने का रास्ता अख्तियार नहीं कर पाये हैं. झामुमो और झाविमो के नेता वेट एंड वाच की स्थिति में हैं.
कहीं परेशानी का सबब न बन जाए समान विचारधारा वाले दलों को एक मंच पर लाना
झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन, कांग्रेस के साथ और अन्य समान विचारधारा वाले दलों को एक मंच पर लाने का दंभ भर रहे हैं, पर उन्हें यह भी डर सता रहा है कि सीट बंटवारे के उलझन से उनकी ही पार्टी में भारी विरोध होगा और पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता दूसरे दलों तक छिटकेंगे. यह डर काफी भारी है.
दूसरी ओर पार्टी के ही अन्य बड़े नेता यह कह रहे हैं कि झामुमो की नजर सभी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर है. यह उनकी पहली पसंद है, क्योंकि ट्राइबल मतों की एकजुटता का दावा ये हर चुनाव में करते रहे हैं. राज्य की 81 सीटों में से 28 एसटी सीटें हैं. झामुमो का फोकस कोल्हान, संताल परगना और उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल है. झामुमो अकेले 40 से 50 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, वह भी कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के नाम पर. अब तक कांग्रेस के झारखंड प्रभारी आरपीएन सिंह और प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ही झामुमो से प्रत्यक्ष तौर पर बातचीत करते दिखे हैं. इस पर कांग्रेस में भी जम कर खेमेबाजी चल रही है. इससे लगता है कि विपक्षी गठबंधन को एक मंच पर लाने का सपना, सपना ही नहीं रह जाये.
झाविमो खोल नहीं रहा है पत्ता
झारखंड विकास मोर्चा ने अब तक अपना पत्ता नहीं खोला है. हालांकि 40 सीटों पर पार्टी तैयारी कर रही है. पार्टी प्रमुख बाबूलाल मरांडी के बारे में राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा है कि वे कभी झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन का नेतृत्व स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए वे उन दिनों को देख रहे हैं, जब बड़े दलों में फूट हो और वहां से नेता इनके खेमे में आकर चुनाव लड़ें. झाविमो इसलिए राजनीतिक गठबंधन से अब तक अकेले दिख रहा है. हालांकि पार्टी के कुछ नेता राजद (लोकतांत्रिक) तथा अन्य दलों से बातचीत कर रहे हैं, ताकि भाजपा के रथ को रोका जा सके. पार्टी की तरफ से अनुसूचित जनजाति वाले सीटों पर अधिक नजर है. इनके मार्फत ही विधानसभा का रास्ता तय करना इन्हें आसान लग रहा है.
आजसू का राग, एलायंस में रहेंगे, पर चुनाव लड़ेंगे अधिक सीटों पर
आजसू पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का अब तक हिस्सा है. पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जिस तरह से सीटों के लिए मगजमारी कर रहा है, उससे लग रहा है कि कई सीटों पर फ्रेंडली फाइट होगी. पार्टी की तरफ से 20 से अधिक सीटें मांगी जा रही हैं. ऐसे में सत्तारूढ़ दल भाजपा की नजरें भी तनी हुई हैं. आजसू के कई नेता पोस्ट पोल एलायंस की बातें भी कर रहे हैं. अब समय काफी कम है. यह देखना लाजिमी होगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा. हालांकि पार्टी में भी अंदरखाने की तरफ कई सुरंग हैं, जिसे पाटना भी पार्टी नेतृत्व के लिए जरूरी होगा. अब तक पार्टी के नेता अलग ही राग अलाप रहे हैं.
वामपंथी और झारखंड नामधारी दलों की स्थिति स्पष्ट नहीं
विधानसभा चुनाव को लेकर वामपंथी दल भाकपा, माकपा, भाकपा (माले), झारखंड पार्टी, झारखंड पार्टी (नरेन) गुट, झारखंड सेंगेल पार्टी का भी लक्ष्य स्पष्ट नहीं है. भाकपा ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ने की बातें कही हैं. भाकपा माले 10 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की फिराक में है. झापा (एनोस) गुट भी चार-पांच सीटों पर चुनाव जरूर लड़ेगी. झारखंड सेंगेल पार्टी 20 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ सकती है.