राहुल मेहता,
वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या, राह में बिखरे शूल न हो…
नाविक कि धैर्य प्रतीक्षा क्या, गर धारा प्रतिकूल न हो.
रांची: परिस्थिति धनबाद की 12 वर्षीय मंगोल बालिका एंजेलिना मगदलीनी के लिए भी प्रतिकूल थी, पर न तो उसने हार मानी न उसके अभिभावकों ने हौसला खोया. हुनर के बीज को कब तक रोका जा सकता है? वह पत्थर पर भी नमी मिलने पर उग जाता है. एंजेलिना को भी अवसर रूपी नमी मिली और उसने 4 नवम्बर को अमेरिका के डेनवर में आयोजित फैशन प्रतियोगिता में सफलता का परचम लहरा दिया. उसकी प्रतिभा से प्रभावित अन्तर्राष्ट्रीय संस्था “स्काई इज नॉट माय लिमिट” ने उसके साथ तत्काल करार कर लिया. अब एंजेलिना अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मंगोल (डाउन सिंड्रोम) व्यक्तियों के प्रोत्साहन के लिए मॉडलिंग और फोटोग्राफी करेगी.
विदित हो एंजेलिना ने इसी वर्ष में आयोजित फोटोग्राफी एवं फैशन शो प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त कर दिव्यांगजनों को एक नयी राह दिखाई थी और सबका सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था. पर न तो उसकी सफलता और न ही देश का कानून जिले के प्रतिष्ठित विद्यालय के लिए मायने रखता था. उसे चौथी कक्षा के बाद विद्यालय से निकाल दिया गया था. पहले तो मिथ्या आरोप लगाये गए पर राज्य निशक्तता आयुक्त के पत्र पर बहाना बनाया गया कि विद्यालय में विशेष शिक्षक नहीं है.
पुनर्वास विशेषज्ञ एवं झारखण्ड विकलांग जन फोरम के संयोजक ने कार्मेल स्कूल धनबाद के प्रधानाचार्य का ध्यानाकर्षण किया कि सीबीएसई और सीआईएससीई दोनों में आठवीं कक्षा तक के बच्चों के शून्य अस्वीकृति के बारे में विशिष्ट नियम हैं. यही नहीं विद्यालय में विशेष शिक्षक नहीं होने पर उनकी सहबद्धता रद्द करने का भी प्रावधान है. काफी जद्दोजहद के बाद सिर्फ खाना पूर्ति के लिए एंजेलिना विद्यालय जाने लगी. कानूनी प्रावधान एवं समावेश की परिकल्पना से बिलकुल परे.
शिक्षा का अधिकार अधिनियम के पारित होने के साथ, समावेशी शिक्षा अब अपरिहार्य है. शून्य अस्वीकृति नीति अनिवार्य हो गया है. दिव्यांग विद्यार्थियों के आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न संरचनाओं का प्रावधान भी किया गया है. लेकिन अभी भी समावेशी शिक्षा कागज पर है और विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए एक सपना ही है.
राज्य निशक्तता आयुक्त सतीश चन्द्र एवं झारखण्ड विकलांग जन फोरम के सदस्यों ने एंजेलिना को सफलता की बधाई देते हुए उम्मीद जताई कि एंजेलिना की सफलता अवसर की एक नई राह खोलेगी.