रांचीः झारखंड गठन के बाद से एक विचित्र परंपरा चली है. इस परंपरा को अब तक कोई नेता तोड़ नहीं पाए हैं. इस बार सीएम रघुवर दास इस परंपरा के झमेले में पड़ गए हैं. देखना यह होगा कि क्या सीएम रघुवर दास इस मिथक को तोड़ पाएंगे.
परंपरा यह है कि झारखंड गठन के बाद से अब तक जितने भी मंत्रियों ने वन विभाग की जिम्मेवारी संभाली है, सभी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है.
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अब सीएम रघुवर दास पर परंपरा तोड़ने की जिम्मेवारी-
झारखंड गठन के बाद जितने भी वन मंत्री रहे सभी को हार का सामना करना पड़ा-
- सबसे पहले मणिका विधानसभा सीट से जीत कर आए यमुना सिंह को वन मंत्री बनाया गया. वे अगले चुनाव में हार गए.
- जरमुंडी के पूर्व विधायक हरिनारायण राय को वन मंत्री बनाया गया वे भी अगले चुनाव में हार गए.
- पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो को भी वन विभाग की जिम्मेवारी सौंपी गई थी, लेकिन वे भी अगले चुनाव में अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए.
- निर्दलीय सीएम मधु कोड़ा के पास वन विभाग था, वे भी हार गए.
- पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा ने भी वन विभाग की जिम्मेवारी संभाली थी, वे भी हार गए.
- पूर्व सीएम हेमंत सोरेन के पास भी वन विभाग वे भी अपनी मूल सीट दुमका हार गए.
अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या सीएम रघुवर दास इस मिथक को तोड़ पाएंगे. सीएम के अधीन ही वन विभाग है.
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नोयडा से अंधविश्वास की परंपरा पर योगी ने लगाया ब्रेक
ठीक इसी तरह यूपी के नोएडा से कद्दावर नेताओं के चुनाव हारने की परंपरा पर योगी आदित्यनाथ ने ब्रेक लगाया.
1988 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह से कहा गया था कि वह नोएडा की यात्रा करने की तुलना में जल्द ही कोई कदम नहीं उठा सकते.
अगले वर्ष उनके उत्तराधिकारी एनडी तिवारी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. विभिन्न राजनीतिक पीढ़ियों के साथ विश्वास जारी रहा. यहां तक कि अखिलेश यादव भी इस बग को काट नहीं पाए.
मायावती ने भी 2012 के चुनाव में इस हार के लिए अपनी हार का ठीकरा फोड़ने में संकोच नहीं किया.
मुलायम सिंह यादव भी नोएडा से दूर रहे. 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने इसी अंधविश्वास के कारण दिल्ली छोर से DND फ्लाईवे (नोएडा से नई दिल्ली को जोड़ने) का उद्घाटन करना पसंद किया, लेकिन योगी ने इस परंपरा को तोड़ दिया.