पदमा सहाय,
रांची: नागरिक संशोधन विधेयक जिस तरह संसद में तीखी बहस हुई. विपक्ष का विरोध जारी रहा, फिर लोकसभा में नागरिक संशोधन विधेयक पारित हो गया. अब राज्यसभा में पारित करना सरकार के लिए अग्निपरीक्षा होगी.
नागरिकता (संशोधन) विधेयक का उद्देश्य छह समुदायों – हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध तथा पारसी लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है. बिल के जरिये मौजूदा कानूनों में संशोधन किया जाएगा, ताकि चुनिंदा वर्गों के गैर-कानूनी प्रवासियों को छूट प्रदान की जा सके. चूंकि इस विधेयक में मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है, इसलिए विपक्ष ने बिल को भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए उसकी आलोचना की है.
कांग्रेस क्यों जता रही है ऐतराज
कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन विधेयक को असंवैधानिक एवं संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया और कहा कि इसमें न केवल धर्म के आधार पर भेदभाव किया गया है, बल्कि यह सामाजिक परंपरा और अंतरराष्ट्रीय संधि के भी खिलाफ है.
कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा, ‘यह विधेयक असंवैधानिक है, संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. जिन आदर्शों को लेकर बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने संविधान की रचना की थी, यह उसके भी खिलाफ है.’
उन्होंने कहा कि नागरिकता कानून में आठ बार संशोधन किया गया है, लेकिन जितनी उत्तेजना इस बार है, उतनी कभी नहीं थी. इसका कारण यह है कि यह अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 और 26 के खिलाफ है.
कांग्रेस का कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 14 किसी भी व्यक्ति को भारत के कानून के समक्ष बराबरी की नजर से देखने की बात कहता है, लेकिन यह विधेयक बराबरी के सिद्धांत के खिलाफ है.
क्यों हो रहा है पूर्वोत्तर में विरोध
नागरिकता संशोधन बिल के चलते जो विरोध के स्वर उठ रहे हैं, उसकी वजह यह है कि प्रावधान के मुताबिक अफगानिस्तान पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी.
पूर्वोत्तर राज्यों में भी इस विधेयक का विरोध किया जा रहा है और उनकी चिंता है कि पिछले कुछ दशकों में बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए हिंदुओं को नागरिकता प्रदान की जा सकती है. बीजेपी की सहयोगी असमगण परिषद ने वर्ष 2016 में लोकसभा में पारित किए जाते वक्त बिल का विरोध किया था और सत्तासीन गठबंधन से अलग भी हो गई थी लेकिन जब यह विधेयक निष्प्रभावी हो गया. तब एजीपी गठबंधन में लौट आई थी.