जारी: परमवीर अल्बर्ट एक्का के जारी प्रखंड के डुमरपानी गांव के पहाड़िया आदिम जनजाति परिवार वाले गांव में अबतक ना तो बिजली पहुंची है और न ही पीने के लिए पानी की व्यवस्था हो सकी है. गांव तक पहुंचने के लिए ना तो सड़क है और ना तो सिंचाई की व्यवस्था है.
गांव के ग्रामीण बताते हैं कि वह हर चुनाव में इस उम्मीद के साथ मतदान करते हैं कि अबकी बार गांव की स्थिति सुधरेगी. अबकी बार भी मतदान इसी उम्मीद से किया है. गांव के केवटा कोरवा, जगरनाथ कोरवा, गोला कोरवा, संझिया कोरवा बताते हैं कि इस गांव में आदिम जनजाति के लोग निवास करते हैं जिसके कारण गांव विकास से अछूता है.
उनलोगों ने बताया कि गांव में अबतक बिजली का खंभा भी नही लगा है. आज भी ढिबरी जला कर अपने घरों को रोशन करना पड़ता है. छोटे बच्चे ढिबरी की रोशनी में पढ़कर अपने उज्ज्वल भविष्य बनाने के सपने देख रहे हैं. गोला कोरवा बताते हैं इस गांव में अब तक एक भी प्रधानमंत्री आवास नही बना है.
पूरे गांव में एक भी पक्का मकान नही है. यहां के आदिम जनजाति परिवारों को पता ही नही है कि ये आवास किस योजना के तहत बनाई जा रही है. गांव के लोग सरकार द्वरा चलाई जा रही सरकारी सुविधाओं से लगातार वंचित हैं.
डुमरपानी गांव में पहुंचने के लिए सड़क नहीं है. खेतों से होकर आना जाना पड़ता है. इससे बरसात के दिनों में काफी समस्या होती है. सरकार एक ओर 18 से 20 घंटे बिजली देने का दावा करती है. वहीं दूसरी ओर इस गांव में आज तक बिजली का खंभा भी नहीं पहुंचा है.
ग्रामीण बताते हैं इस गांव 15 से 20 छोटे-छोटे बच्चे हैं जो आंगनबाड़ी केंद्र जाने लायक हैं. लेकिन इस गांव में आंगनबाड़ी केंद्र भी नहीं है. सुविधाओं का लाभ पाने के लिए दूसरे गांव 3 किलोमीटर दूर डुमरटोली जाना पड़ता है. इस गांव में 120 लोगों की आबादी है, जिनकी प्यास बुझाने के लिए दाड़ी ही सहारा है.
हर ओर जलमीनार से लोगों को पानी मिल रहा है लेकिन डुमरापानी गांव के लोग दाड़ी का पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं. गांव के लोगों के पास रोजगार भी नहीं है. आदिम जनजाति परिवार खेती पर आश्रित है, परंतु सिंचाई की सुविधा नहीं होने के कारण लोग अच्छी खेती भी नही कर पाते हैं.
आदिम जनजाति के जिला अध्यक्ष राजेंद्र कोरवा ने कहा कि गांव तक पहुंच पथ भी नहीं है. सड़क पर गड़वाल पुल की आवश्यकता है. सड़क नहीं होने के कारण बरसात के दिनों में गांव टापू बन जाता है.
रोजगार की कमी के कारण गांव के युवा पलायन कर रहे हैं. दिल्ली मुंबई में जाकर मजदूरी का काम करने को विवश हैं. कोई इस गांव में हालात जानने सुनने भी नहीं आता. यह गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है.