42 साल का शख्स जो पेशे से नाक, कान, गले का सर्जन है और फिर वो अभिनय को अपना पेशा बना लेता है . ऐसे ही थे डॉक्टर श्रीराम लागू . पुणे और मुंबई में पढ़ाई करने वाले श्रीराम लागू को एक्टिंग का शौक बचपन से ही था. पढ़ाई के लिए उन्होंने मेडिकल को चुना पर नाटकों का सिलसिला वहां भी चलता रहा . मेडकिल का पेशा उन्हें अफ्रीका समेत कई देशों में लेकर गया. वो सर्जन का काम करते रहे लेकिन मन एक्टिंग में ही अटका था .
आपको बता दें की 16 नवंबर 1927 को सातारा में जन्मे श्रीराम लागू पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे . 100 से अधिक हिंदी और मराठी फिल्मों में काम कर चुके श्रीराम लागू के रिश्तेदार ने बताया कि शाम लगभग साढ़े सात बजे पुणे में उन्होंने अंतिम सांस ली . सिनेमा के अलावा मराठी, हिंदी और गुजराती रंगमंच से जुड़े रहे श्रीराम लागू ने 20 से अधिक मराठी नाटकों का निर्देशन भी किया . मराठी थिएटर में तो उन्हें 20वीं सदी के सबसे बेहतरीन कलाकारों में गिना जाता है.
42 साल की उम्र में उन्होंने थिएटर और फिल्मों की दुनिया में कदम रखा . 1969 में वह पूरी तरह मराठी थिएटर से जुड़ गए . ‘नटसम्राट’ नाटक में उन्होंने गणपत बेलवलकर की भूमिका निभाई थी जिसे मराठी थिएटर के लिए मील का पत्थर माना जाता है. दरअसल, गणपत बेलवलकर का रोल इतना कठिन माना जाता है कि इस रोल को निभाने वाले बहुत सारे थिएटर एक्टर गंभीर रूप से बीमार हुए .
नटसम्राट के इस रोल के बाद डॉक्टर लागू को भी दिल का दौरा पड़ा था. श्रीराम लागू ने हिंदी और मराठी फिल्मों में कई यादगार रोल किए. मसलन 1977 की फिल्म घरौंदा का वो उम्रदराज बॉस (मिस्टर मोदी) जो अपने ऑफिस में काम करने वाली एक युवा लड़की (जरीना वहाब) से शादी करता है . जरीना वहाब दरअसल अमोल पालेकर से प्यार करती है लेकिन अमोल पैसे के लालच में जरीना को मजबूर करता है कि वो श्रीराम लागू से शादी करे .
मगर धीरे-धीरे एक उम्रदराज मर्द और एक युवा लड़की के बीच प्यार पनपता है, घरौंदा उसकी खूबसूरत सी कहानी है. ये रोल आसानी से नेगेटिव शेड ले सकता था लेकिन श्रीराम लागू इसे बड़ी नजाकत से निभाते हैं . घरौंदा के लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेता का अवॉर्ड मिला था.
सिंहासन, सामना, पिंजरा जैसी मराठी फिल्मों और चलते-चलते, मुकद्दर का सिंकदर, सौतन और लवारिस जैसे कई हिंदी और मराठी फिल्मों में उन्होंने काम किया. रिचर्ड एटनब्रा की फिल्म गांधी में गोपाल कृष्ण गोखले का उनका छोटा सा रोल भी हमेशा याद रहता है, वही रोल जो उन्होंने बचपन में पुणे के अपने स्कूल में किया था. अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने एक बार कहा था कि श्रीराम लागू की आत्मकथा ‘लमाण’ किसी भी एक्टर के लिए बाइबल की तरह है .