पदमा सहाय
रांचीः एक तरफ झारखंड को विकसित राज्य बनाने का दावा. शिक्षा के ग्राफ से सुधार की बातें. लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर. खुद सरकार के आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं. हम बात कर रहे हैं झारखंड में अंध विश्वास की. अंध विश्वास का आलम ऐसा कि महज आठ साल में डायन-बिसाही के नाम पर 346 महिलाओं की जान ले ली गई. यह सब सरकारी तंत्र के सामने ही हुआ. इस पर प्रशासन की भी चुप्पी. 21 वीं सदी के 20वें साल में प्रवेश कर रहे राज्य में अन्धविश्वाश उन्मूलन पर न तो कोई प्रगति हुई न ही कोई बदलाव आया . इसके ठीक उलट जमीनी स्तर पर इन मामलों में वृद्धि ही हुई है.
एनजीओ का भी दंभ काम न आया
राज्य में ऐसे कई एनजीओ हैं जो डायन-बिसाही के के प्रति लोगों को जागरुक करने का काम भी कर रहे हैं. इसके एवज में सरकार उन्हें फंड भी उपलब्ध कराती है. लेकिन ये फंड कहां गया, कितना काम हुआ, किसी का भी ब्योरा उपलब्ध नहीं है. यहां तक की इन मामलों में एफआइआर भी दर्ज कराए गए, लेकिन एफआइआर की कॉपी थानों में धूल फांक रही हैं.
मॉब लींचिंग भी राज्य के लिए बना अभिशाप
मॉब लींचिंग भी झारखंड के लिए अभिशाप बन गया. इसकी आड़ में भी कई लोगों की जानें चली गईं. यहां तक की सरायकेला के तत्कालीन एसपी और डीसी को सरकार ने निलंबित भी किया. उसके बावजूद भी यह घटना अब तक रूक नहीं पाई है. झारखंड में शिक्षा का अलख जगा रहे लोगों पर भी सवालिया निशान खड़ा हो गया है.
जानिए डायन-बिसाही के नाम पर साल दर साल कितनी महिलाओं की जानें गईं.
वर्ष डायन हत्या
2011- 36
2012- 33
2013- 47
2014- 38
2015- 47
2016- 45
2017- 41
2019- 30
Nov 2019- 26