रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने रविवार को मुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली और उनके साथ कांग्रेस कोटे से दो तथा राजद के एक विधायक को मंत्री के रूप में शपथ दिलायी गयी. परंतु झामुमो कोटे से किसी को भी हेमंत सोरेन ने मंत्री के रूप में शपथ नहीं दिलायी. पार्टी के कई कद्दावर नेता इस बार भी चुनाव जीत कर आये और अब हेमंत सोरेन के लिए पार्टी विधायकों पर नियंत्रण रखना और उन्हें समझाना भी बड़ी चुनौती होगी.
विधानसभा चुनाव में झामुमो सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आया है, 81 सदस्यीय विधानसभा में झामुमो के 30 विधायक चुनाव जीत कर आये है, जिसमें दर्जन भर दिग्गज फिर से झामुमो कोटे से जीत कर विधानसभा पहुंचे है.
हेमंत और तीन मंत्रियों को शपथ दिलायी गयी और संवैधानिक प्रावधान के तहत झारखंड जैसे छोटे राज्य में अधिक मंत्रियों की संख्या 12 हो सकती है, इस तरह से मंत्रिमडंल में और 8 लोगों को शामिल किया जाना है. बताया गया है इनमें कांग्रेस के हिस्से दो या तीन और मंत्री पद दिए जा सकते हैं. अगर स्पीकर कांग्रेस कोटा से होगा तब यह संख्या दो होगी. जबकि झामुमो कोटे से पांच या छह विधायकों को मंत्री के रूप में शपथ दिलायी जा सकती है.
अब सबकी निगाहें इसी ओर टिकी है कि झामुमो से कौन मंत्री बनेगा. कई विधायक गुरुजी का आशीर्वाद पाने में लगे हैं. उन्हें पता है कि फैसले में गुरुजी की भी बात सुनी जाएगी. झामुमो ने इस बार कोल्हान की 14 में से 11 सीटों पर चुनाव जीता है. दो सीटों पर कांग्रेस और जमशेदपुर पूर्वी में निर्दलीय के तौर पर सरयू राय की जीत हुई है. कोल्हान से ही चंपई सोरेन, दीपक बिरूआ, सविता महतो, जोबा मांझी, दशरथ गागराई, निरल पूर्ति मंत्री बनने की आस में हैं. चंपई सोरेन सरायकेला से पांच बार चुनाव जीते हैं. हेमंत सोरेन की सरकार में पहले मंत्री रह चुके हैं, तो मांझी भी पांच बार चुनाव जीत चुकी हैं. एकीकृत बिहार में और झारखंड की सरकार में मंत्री रही हैं. उनकी नजर भी मंत्री पद पर है. जबकि स्वर्गीय सुधीर महतो की पत्नी सबिता महतो पहली बार चुनाव जीती है, लेकिन शहीद निर्मल महतो परिवार से आने के कारण उनकी भी मजबूत दावेदारी है. दीपक बिरूआ तीन बार चाईबासा से लगातार चुनाव जीते हैं. चाईबासा में भाजपा की दीवार को हिलाने में उनकी दमदारी उभरी है. इस बार मंत्रिमंडल में उनकी दावेदारी सबसे मजबूत हो सकती है. इसी तरह मझगांव और खरसावां से फिर चुनाव जीते निरल पूर्ति और दशरथ गागराई की भी नजर मंत्रिमंडल पर है. दशरथ गागराई ने 2014 में अर्जुन मुंडा को हराया था और इस बार भी भाजपा को शिकस्त देने में सफल रहे हैं. उधर बिशुनपुर से चमरा लिंडा भी तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. फैसला हेमंत सोरेन को लेना है.
संताल और कोयलांचल की दमदारी
उधर संताल परगना में स्टीफन मरांडी, नलिन सोरेन, हाजी हुसैन अंसारी और लोबिन हेंब्रम सरीखे दिग्गज चुनाव जीते हैं. इसमें से तीन पहले भी मंत्री भी रह चुके हैं. नलिन सोरेन सात बार शिकारीपाड़ा से लगातार चुनाव जीतने वालों में शामिल हो गए हैं. स्टीफन मरांडी का राजनीतिक अनुभव और प्रोफाइल बड़ा है. वे पहले वित्त मंत्री रहे हैं. विधायी कार्यों के जानकार है. दुमका और महेशपुर से अब तक सात बार वे भी जीत चुके हैं. हाजी हुसैन अंसारी अब तक पांच चुनाव जीत चुके हैं.पहले मंत्री थे और झामुमो में मुस्लिम नेता का बड़ा चेहरा हैं.
इधर मुस्लिम वर्ग से एक और बड़े नेता सरफराज अहमद झामुमो में शामिल हुए और गांडेय से चुनाव जीत कर आये है. कांग्रेस में लंबी राजनीति करने और पहले भी सांसद, विधायक का चुनाव जीतने वाले सरफराज अहमद की भी दावेदारी की चर्चा है. उधर जामा में सीता सोरेन तीन बार चुनाव जीत चुकी हैं और वो भी दुर्गा सोरेन की राजनीतिक विरासत संभाल रही हैं. महिला कोटा से वे भी मंत्री बनने की प्रबल दावेदार हो सकती हैं.
इधर कोयलांचल में जगरनाथ महतो डुमरी से लगातार चार बार चुनाव जीते हैं. टुंडी में मथुरा महतो ने भाजपा और आजसू पार्टी को पछाड़ कर चुनाव जीतने में सफल रहे हैं. इससे पहले मथुरा महतो मंत्री रह चुके हैं और वे शिबू सोरेन के विश्वासी माने जाते हैं. ये तमाम चेहरे पुराने और बड़े प्रोफाइल वाले हैं, जिनका नाम मंत्री के लिए उछलता रहा है.
उलझनों को देखते हुए ही हेमंत सोरेन ने इत्मिनान से मंत्रिमंडल गठन का निर्णय लिया होगा. इसके लिए वे सबको विश्वास में ले सकते हैं. लेकिन इतना तो दिख ही रहा है कि इलाके, वोट, अनुभव, सरकार की जरूरतों और जातीय समीकरणों के हिसाब से भी हेमंत सोरेन के सामने सबको साधने और समीकरण बनाए रखने की चुनौती है. गुंजाइश इसकी भी है कि मंत्रिमंडल के पूर्णतया गठन के बाद विधायकों के दिल की बात बाहर आए.
झामुमो के केंद्रीय महासचिव और प्रवक्ता विनोद कुमार पांडेय कहते हैं कि झामुमो विश्वास और एकजुटता से ही चलता बढ़ता रहा है. कहीं कोई दिक्कत नहीं होगी. सभी नेताओं विधायकों को अपने नेता पर भरोसा है. समय के साथ नामों का चयन हो जाएगा और सरकार जनआंकाक्षा के अनुरूप काम करेगी.