जमशेदपुर: राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि जनजातियों को अपनी संस्कृति, भाषा के प्रति सम्मान रखना चाहिये. उन्हें अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने चाहिये. जनजाति समाज में दहेज-प्रथा नहीं है, यह सुखद है.
राज्यपाल आज जमशेदपुर में भारत सेवा श्रम संघ द्वारा आयोजित त्रिशुल उत्सव और ट्राइबल कांफ्रेंस को संबोधित कर रही थी. हमारे देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा जनजातियों का है. अति प्राचीन काल से ही जनजातीय समुदाय भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं. इन्हें विभिन्न नाम जैसे- जनजाति, आदिवासी, वन्यजाति, गिरिजन आदि दिये गये हैं. उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान में अनुसूचित जनजाति शब्द का उपयोग किया जाता है. इस समुदाय का इतिहास काफी समृद्ध रहा है. विश्व स्तर पर इसकी अमिट पहचान रही है. भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के ये अभिन्न अंग रहे हैं.
जनजातियों की कला, संस्कृति, लोक साहित्य, परंपरा एवं रीति-रिवाज समृद्ध रही है. जनजातीय गीत एवं नृत्य बहुत मनमोहक है. ये प्रकृति प्रेमी हैं. इसकी झलक इनके पर्व-त्यौहारों में भी दिखती है. इस राज्य में ही विभिन्न अवसरों पर देखते हैं कि जनजातियों के गायन और नृत्य उनके समुदाय तक ही सीमित नहीं हैं, सभी के अंदर उस पर झूमने के लिए इच्छा जगा देती है.
झारखंड राज्य में 3.25 करोड़ से अधिक की आबादी में जनजातियों की संख्या आबादी का लगभग 27 प्रतिशत है. राज्य में 32 प्रकार की अनुसूचित जनजातियां हैं, जिनमें आदिम जनजाति भी सम्मिलित हैं. जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा ग्रामों में निवास करते हैं. अनुसूचित जनजातियों के पास विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार की विधा होती है. वे विभिन्न प्रकार की व्याधियों के उपचार की औषधीय दवा के सन्दर्भ में जानते हैं.
राज्यपाल ने कहा कि अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनायें संचालित है. जनजातियों को भी अपने अधिकारों के प्रति व उनके लिए सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के प्रति पूर्ण रूप से जागरूक होने की जरूरत है.