रांची: खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड खद्यान्न उत्पादन के मामले में काफी नीचे है. यहां राज्य की जरूरत का ही अन्न पैदा नहीं हो पता है. इसकी एक वजह यहां की अधिकतर जमीन का अम्लीय होना है. इसकी वजह से किसानों के मेहनत करने के बाद भी पैदावार कम होती है. किसानों को लाभ नहीं मिल पाता है.
ये है स्थिति
- राज्य के जामताड़ा, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग और रांची के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 50 प्रतिशत से अधिक भूमि अम्लीय समस्या से ग्रस्त है.
- सिमडेगा, गुमला एवं लोहरदगा में 69-72 प्रतिशत तक अम्लीय भूमि की समस्या है.
- पलामू, गढ़वा एवं लातेहार में अम्लीय भूमि का क्षेत्र का क्षेत्रफल करीब 16 प्रतिशत है.
- सरायकेला, पूर्वी सिंहभूम और पश्चिम सिंहभूम में भूमि का क्षेत्रफल 70 प्रतिशत अम्लीय है.
ये होता है प्रभाव
अम्लीय जमीन में गेहूं, मक्का, दलहन और तिलहनी फसलों की उपज संतोषप्रद नहीं हो पाती है. ऐसी मिट्टी में अनेक पोषक तत्वों की कमी पायी जाती है. मिट्टी के अधिक अम्लीय होने के कारण एल्युमिनियम, मैंगनीज और लोहा घुलनशील हो जाते हैं. पौधों को अधिक मात्रा में इनकी उपलब्ध होने से उत्पादन पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है.
क्यों होती है ऐसी स्थिति
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक झारखंड पठारी क्षेत्र है. यहां बारिश अधिक होती है. ऐसे में खेतों से पौष्टिक तत्व बह जाते हैं. केवल आयरन और एल्मूनियम बच जाते हैं. ये मिट्टी को अम्लीय बनाते हैं. हालात को देखते हुए मिट्टी के दीर्घकालीन ट्रीटमेंट की जरूरत है. अब सिर्फ पोषक तत्वों के प्रयोग से फायदा नहीं पहुंचने वाला है.
समुचित उपचार की जरूरत
बिरसा कृषि विश्वंविद्यालय के निदेशक अनुसंधान डॉ डीएन सिंह ने कहा कि देश की 40-50 प्रतिशत मिट्टी अम्लीय और बीमार है. इसका लाभकारी उपयोग करने के लिए समुचित उपचार करने की जरूरत है. मिट्टी स्वस्थ होगी, तभी हमें पौधों से पोषक तत्व मिलेगा. पैदावार में इजाफा होगा.