जोधपुर का मेहरानगढ़ किला 120 मीटर ऊंची एक चट्टान पहाड़ी पर निर्मित है. इस तरह से यह किला दिल्ली के कुतुब मीनार की ऊंचाई (73मीटर) से भी ऊंचा है. किले के परिसर में सती माता का मंदिर भी है. 1843 में महाराजा मान सिंह का निधन होने के बाद उनकी पत्नी ने चिता पर बैठकर जान दे दी थी. यह मंदिर उसी की स्मृति में बनाया गया.
आसमान से कुछ यूं नज़र आता है जोधपुर का ये खूबसूरत किला
मेहरानगढ़ किला एक पहाड़ी पर बनाया गया जिसका नाम ‘भोर चिड़िया’ बताया जाता है. ये किला अपने आप में जोधपुर का इतिहास देख चुका है, इसने युद्ध देखे हैं और इस शहर हो बदलते भी देखा है.
10 किलोमीटर में फैली है किले की दीवार
इस किले के दीवारों की परिधि 10 किलोमीटर तक फैली है. इनकी ऊंचाई 20 फुट से 120 फुट तथा चौड़ाई 12 फुट से 70 फुट तक है. इसके परकोटे में दुर्गम रास्तों वाले सात आरक्षित दुर्ग बने हुए थे. घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं. किले के अंदर कई भव्य महल, अदभूत नक्काशीदार दरवाजे, जालीदार खिड़कियां हैं.
500 साल से पुराना है यह किला
जोधपुर शासक राव जोधा ने 12 मई 1459 को इस किले की नींव डाली और महाराज जसवंत सिंह (1638-78) ने इसे पूरा किया. इस किले में बने महलों में से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि. इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है.
1965 के युद्ध में देवी ने की थी इसकी रक्षा
राव जोधा को चामुंडा माता में अथाह श्रद्धा थी. चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी रही हैं. राव जोधा ने 1460 मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की. माना जाता है कि 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान सबसे पहले जोधपुर को टारगेट बनाया गया. माना जाता है कि इस दौरान माता के कृपा से यहां के लोगों का बाल भी बांका नहीं हुआ था.
किले के छत पर रखे तोपों से होती थी 6 किलोमीटर के क्षेत्र की रक्षा
इस किले के दीवारों पर रखे भीमकाय तोपों से आस-पास का छह किलोमीटर का भू-भाग सुरक्षित रखा जाता था. किले के दूसरे दरवाजे पर आज भी पिछले युद्धों के दौरान बने तोप के गोलों के निशान मौजूद हैं.
आज भी मौजूद हैं रानियों के आत्मदाह के निशान
अंतिम संस्कार स्थल पर आज भी सिंदूर के घोल और चांदी की पतली वरक से बने हथेलियों के निशान पर्यटकों को उन राजकुमारियों और रानियों की याद दिलाते हैं जिन्होंने अपने पतियों के लिए जौहर या आत्मदाह किया था.
अदभूत है इस महल की शिल्पकारी
मेहरानगढ़ किले में लगे आकर्षक बलुआ पत्थर जोधपुर के कारीगरों की शानदार शिल्पकारी का प्रदर्शन करते हैं. मेहरानगढ़ किले में भव्य महल भी हैं, जैसे मोती महल. इसमें ‘श्रीनगर चैकी’ नाम का जोधपुर का सिंहासन भी है. फूल महल की छत पर सोने का महीन काम किया हुआ है. इसके अलावा यहां रंग महल और चंदन महल भी हैं.
क्या कुछ देख सकते हैं?
मेहरानगढ़ क़िला जोधपुर की विरासत का हिस्सा है. आज भी कई बड़े पर्व यहां आयोजित किये जाते हैं जिसमें संगीत से जुड़ा ‘वर्ल्ड सेक्रेड स्पिरिट फेस्टिवल’ शामिल है जो कि जोधपुर के लोक और पारम्परिक संगीत के अलावा सूफी संगीत की शानदार जुगलबंदी लोगों के सामने पेश करता है. इसके साथ ही घंघोर, दशहरा भी यहाँ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.
हो चुकी है हॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग
कामयाब अंग्रेजी फिल्म ’डार्क नाइट’ के कुछ हिस्से भी मेहरानगढ़ में फिल्माए जाने के बाद यह हॉलीवुड के लिए भी एक शानदार डेस्टीनेशन बन गया. यहां ब्रूस वेन को कैद करने, जेल पर हमला करने आदि के दृश्य फिल्माए गए थे.
Credit: राज इंदर गोयल