ब्यूरो चीफ रांची,
रांची: बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सोरेन सरकार से समर्थन वापस ले लिया. दोनों का साथ महज एक महीने ही चल सका. बदलते घटना क्रम में झाविमो के समर्थन वापस लेने के कदम को कई मायने निकाले जा रहे हैं. हेमंत सरकार को समर्थन देने से पहले बाबूलाल ने कहा था कि चुनाव हमने भले ही अलग-अलग लड़ा था, पर दोनों का एक ही उद्देश्य था. वह था भाजपा को सत्ताा से बाहर रखना.
24 दिसंबर को समर्थन
विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद 24 दिसंबर को पार्टी ने सरकार को समर्थन देने का निर्णय लिया था. इस बाबत झारखंड विकास मोर्चा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर जानकारी दी थी. एक महीने बाद 24 जनवरी को समर्थन वापस ले लिया.
तैयार हो रही थी पृष्ठाभूमि
बाबूलाल के समर्थन वापसी की पृष्ठभूमि पहले से तैयार हो रही थी. मरांडी हाल के दिनों में हेमंत सोरेन के कई कदम की आलोचना कर रहे थे. उन्होंने सीएए के समर्थन में भी बयान दिया था. कहा था कि भाजपा अपने एजेंडे को लागू कर रही है तो किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए.
सरकार की सेहत पर असर नहीं
बाबूलाल मरांडी के समर्थन वापस ले लेने से भी सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. हेमंत सरकार के पास गठबंधनों दलों को मिलाकर बहुमत से अधिक विधायक हैं. झामुमो के अकेले 30 विधायक हैं. कांग्रेस के 16 और राजद के एक विधायक हैं. इन तीनों को मिलाकर विधायकों की संख्या 47 होती है. बहुमत के लिए आंकड़ा 41 है.
ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा
समर्थन वापस लेने का ठीकरा बाबूलाल मरांडी ने कांग्रेस पर फोड़ा है. उन्होंने हेमंत सोरेन को लिखे पत्र में कहा है कि गठबंधन में शामिल कांग्रेस पार्टी की ओर से उनके विधायकों को तोड़कर अपने दल में शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है. ऐसे में पार्टी उनके नेतृत्व में चल रही सरकार को समर्थन देने के मुद्दे पर पुनर्विचार करते हुए समर्थन वापस लेने का निर्णय लेती है.
विलय में होती परेशानी
बाबूलाल मरांडी के समर्थन वापस लेने से हेमंत सोरेन सरकार को कोई परेशानी नहीं होगी. हालांकि समर्थन देते रहने से झाविमो के भाजपा में विलय पर परेशानी होती. ऐसा माना जा रहा है कि इसे ध्यान में रखकर ही बाबूलाल ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया.