रांची: एक दशक की सबसे धीमी विकासदर और कमजोर राजस्व संग्रहण के परिदृश्य में 1 फरवरी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण संसद में बजट पेश करेंगी. सीएसओ जो आधिकारिक तौर पर विकासदर के आंकड़े जारी करती है और ताजा अनुमान 5 प्रतिशत की दर का हैं, जो 11 सालों में अर्थव्यवस्था के बढ़ने की सबसे धीमी गति है.
आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि इस सुस्त अर्थव्यवस्था का मुख्य कारण बाजार में उपभोक्ता मांग में आयी गिरावट है. जब विकास दर गिरती है तो लोगों की आय में कमी आ जाती है. आय में कमी के कारण लोगों की क्रय शक्ति में कमी आ गयी. जिससे बाजार से मांग गायब जैसी हो गयी है. जब बाजार में मांग नहीं रहेगी तो कोई व्यापारी नया निवेश नहीं करता है. इसी कारण निवेश दर में मात्र 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गयी है.
देश की इकॉनमी को गति देने की आज सबसे बड़ी चुनौती है. विकास दर बढ़ाना ही होगा, इसके लिये बजट के द्वारा खर्च बढ़ाया जाना सबसे अच्छा उपाय होगा. खर्च बढ़ाने से मांग बाजार में निर्मित होगी. सवाल है खर्च किस सेक्टर में बढ़ाया जाय. इसमें विशेषज्ञों का सुझाव यही है कि ग्रामीण सेक्टर में, आधारभूत सरंचना में, रियल एस्टेट में, और मनरेगा में खर्च बढ़ाना चाहिए.
इसके अलावा यह भी जरुरी है की वित्तीय प्रोत्साहन दिये जाएं. ताकि लोगों को उनकी क्रय शक्ति में इजाफा हो सके. ऐसे प्रोत्साहन का स्वरुप टैक्स में कमी करके, नए घर खरीदने में टैक्स छूट देकर, किसान योजना की राशि में बढ़ोतरी करके और उसका समुचित ट्रांसफर करके किया जा सकता है.
सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि नॉन बैंकिंग कंपनियों को फंड की उपलब्धता करने के उपाय सरकार को बजट में करना चाहिए ताकि क्रेडिट ग्रोथ में बढ़ोतरी हो तो अर्थव्यवस्था को गति मिले. सरकार को राजस्व के नए तरीके इजाद करने और बढ़ोतरी करने के उपाय भी करने होंगे, ताकि फिस्कल डेफिसिट ज्यादा परेशानी का कारण ना बने. इस समय विकास दर बढ़ाना पहली चिंता बने, यह सरकार के बजट में दिखनी चाहिए.