रांची: कोई भी मुल्क या समुदाय अपना कोई भूखंड या इलाका नक्शे से गायब होने या प्रशासनिक कमजोरी की वजह से नहीं खोता, बल्कि इसलिए गवां बैठता है कि वह भूखंड उसके लोगों के मन से गायब हो जाता है. कश्मीर के साथ ऐसा ही है, कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा हिन्दुस्तान के नक्शे में तो अब भी मौजूद है लेकिन हिन्दुस्तान के अधिकार में नहीं है क्योंकि हिन्दुस्तान के लोगों के लिए वे इलाके अपरिचित हो चुके हैं. जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की झारखंड इकाई द्वारा रविवार को रांची के पलाश सभागार में आयोजित ब्याख्यान में कैप्टेन (सेवानिवृत) आलोक बंसल ने ये बातें कहीं.
कैप्टेन बंसल ने कहा कि दुनिया भर में फैले यहूदी हर साल एक बार दुनिया के किसी एक शहर में इकट्ठा होकर यह प्रण करते थे कि “अगले साल यरूशलम में मिलेंगे.” उनके इस संकल्प ने उन्हें इजराईल बनाने की ताकत दी. हिन्दुस्तान के लोग भी पकिस्तान और चीन के अधिकार क्षेत्र का अपना कश्मीर वापस हासिल कर सकें, इसके लिए हिन्दुस्तानियों को भी हमेशा अपने जेहन में उन खूबसूरत भूखंडों को बनाए रखना होगा.
इसी उद्देश्य से 2010 में जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की स्थापना हुई और देश के विभिन्न शहरों में इस प्रकार के ब्याख्यान आयोजित कर हिन्दुस्तानियों को पाकिस्तान और चीन अधिकृत कश्मीर से भावनात्मक तौर पर जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. झारखंड में इसी प्रकार के आयोजन धनबाद और जमशेदपुर में हो चुके हैं.
अपने ब्याख्यान के माध्यम से कैप्टेन बंसल ने उपस्थित जनसमुदाय को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के भूगोल, भाषा – संस्कृति, अर्थव्यवस्था, धार्मिक आधार पर वहां रह रहे लोगों के बीच मौजूद अंतर, अलग अलग समूहों द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन और मौजूदा भारतीय समुदाय के साथ इन चीजों के साम्य से परिचित कराया. ऐतिहासिक उद्धरणों के माध्यम से कैप्टेन बंसल ने पकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर भारत के दावे को सही ठहराने के कई तर्क दिए. चीन अधिकृत लद्दाख की चर्चा करते हुए कैप्टेन बंसल ने उसका सामरिक महत्व निरुपित किया.
कार्यक्रम का संचालन रमाकांत महतो ने किया और मनोज कुमार सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया. विषय प्रवेश अयोध्यानाथ मिश्र ने किया. कार्यक्रम को जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के बिहार एवं झारखंड के क्षेत्र प्रभारी वीरेन्द्र सिंह एवं इन्द्रजीत प्रसाद सिंह ने भी संबोधित किया.