सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पिछले कुछ समय से अपनी आक्रामक घरेलू और विदेशी नीतियों पर पर्दा डालने के लिए कथित उदारवादी सुधारों को लाकर सऊदी शासन की एक अलग छवि गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद वह अपने खिलाफ उठ रही आवाजों को दबा नहीं पा रहे हैं. यमन में सऊदी बमों से मरने वाले नागरिकों की बढ़ती संख्या, इस्तांबुल के सऊदी दूतावास में पत्रकार जमाल खशोगी की खौफनाक हत्या और रियाद के ईरान को लेकर आक्रामक रवैये की वजह से सऊदी के सुन्नी सहयोगी भी क्राउन प्रिंस को समर्थन देने के अपने फैसले पर दोबारा विचार करने को मजबूर हो गए हैं.
फॉरेन पॉलिसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल महीने में लीबिया के सबसे विख्यात सुन्नी मौलवी ग्रैंड मुफ्ती सादिक अल-घरीआनी ने सभी मुस्लिमों से इस्लाम में अनिवार्य माने जाने वाली हज पवित्र यात्रा का बहिष्कार करने की अपील की. उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर कोई भी शख्स दूसरी बार हज यात्रा करता है तो यह नेकी का काम नहीं बल्कि पाप होगा.
इस बहिष्कार की अपील के पीछे तर्क ये है कि मक्का में हज के जरिए सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है. मजबूत अर्थव्यवस्था के जरिए सऊदी की हथियारों की खरीद जारी है जिससे यमन और अप्रत्यक्ष तौर पर सीरिया, लीबिया, ट्यूनीशिया, सूडान और अल्जीरिया में हमलों को अंजाम दिया जा रहा है. मौलवी सादिक ने आगे कहा कि हज में निवेश करना, मुस्लिम साथियों के खिलाफ हिंसा करने में सऊदी की मदद करना होगा.
सादिक पहले विख्यात मुस्लिम स्कॉलर नहीं हैं जो हज के बहिष्कार की अपील कर रहे हैं. सुन्नी मौलवी और सऊदी अरब के प्रखर आलोचक युसूफ अल-काराडावी ने अगस्त महीने में फतवा जारी किया था जिसमें हज की मनाही की गई थी. इस फतवे में कहा गया था कि भूखे को खाना खिलाना, बीमार का इलाज करवाना और बेघर को शरण देना अल्लाह की नजर में हज पर पैसा बहाने से ज्यादा अच्छा काम है.
सऊदी अरब के क्षेत्र में कम होते रुबते का एक सबूत तब मिला जब इराक ने ईरान की निंदा वाले बयान का खुले तौर पर विरोध किया था. यही नहीं, इराक ने ईरान के प्रति समर्थन का संदेश दिया और दूसरे देशों से भी ईरान को स्थिर बनाने की अपील की. मक्का में शिखर वार्ता के दौरान, इराक के राष्ट्रपति बरहम साली ने ईरान के संदर्भ में कहा, ईमानदारी से बात की जाए तो पड़ोसी देश की स्थिरता मुस्लिम और अरब राज्यों के हित में है. शिखर वार्ता के दौरान ही सऊदी अरब इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) से भी ईरान को अलग-थलग कराने में नाकामयाब रहा.
यमन में मौतों के बढ़ते आंकड़ों के साथ पूरी दुनिया में सऊदी अरब के आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक बहिष्कार की अपील तेज हो गई है और यह केवल हथियारों की बिक्री तक सीमित नहीं है. रियाद को पश्चिम में भी दोस्तों की कमी पड़ गई है और अब इसके क्षेत्रीय सहयोगियों के बीच भी दरार पड़ती नजर आ रही है. अगर ट्रंप प्रशासन को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलता है तो सऊदी अरब के कुछ ही अंतरराष्ट्रीय दोस्त बचे रह जाएंगे और उसके मुस्लिम व अरब दुनिया का नेता होने के दावे को बुरी तरह से नुकसान पहुंचेगा.
यह पहली बार नहीं है जब किसी धार्मिक तीर्थयात्रा का राजनीतिकरण किया गया है. सऊदी अरब ने पिछले कुछ वर्षों में कतर और ईरान के नागरिकों को हज तीर्थयात्रा की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. सऊदी अधिकारियों ने मक्का की पवित्रता का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक विचारधारा का प्रचार करने में भी किया.
पिछले साल अक्टूबर महीने में एक उपदेश के दौरान मक्का की मुख्य मस्जिद के इमाम शेख अब्दुल-रहमान अल-सुदैस ने कहा था, इस पवित्र भूमि में सुधार और आधुनिकता से पूर्ण रास्ते पर…युवा, महत्वाकांक्षी और दैवीय ताकतों से प्रेरित सुधारक क्राउन प्रिंस की देखभाल में हम तमाम दबावों और धमकियों के बीच आगे बढ़ रहे हैं. इस संदेश का यही संकेत था कि किसी भी मुस्लिम को सऊदी राजनीतिक परिवार पर सवाल नहीं खड़े करने चाहिए.
वर्तमान में सऊदी साम्राज्य के बहिष्कार की अपीलें केवल शिया समुदाय से नहीं आ रही हैं बल्कि हर समुदाय इस पर एकजुट हो रहा है. ट्विटर पर कम से कम 16,000 ट्वीट्स के साथ #boycotthajj ट्रेंड कर रहा है. दुनिया भर के सुन्नी मौलवी भी हज के बहिष्कार की अपील कर रहे हैं. ट्यूनीशियन यूनियन ऑफ इमाम ने जून महीने में कहा था कि हज से सऊदी प्रशासन को मिलने वाले पैसे का इस्तेमाल दुनिया भर के मुस्लिमों की मदद करने में नहीं किया जाता है बल्कि यमन की तरह मुस्लिमों की हत्या और उन्हें विस्थापित करने में किया जा रहा है.