बिहार: साल 2021 में होने वाली जनगणना से पहले बिहार सरकार ने जातीय जनगणना कराने का बड़ा फैसला लिया है. विधानसभा में गुरुवार को इसके लिए एक प्रस्ताव पास किया है. राज्य में सत्तारूढ़ जेडीयू सहित कई राजनीतिक दल लंबे समय से इस तरह की मांग करते रहे है.
जेडीयू ने साल 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी प्रदेश में जाति आधारित जनगणना के मुद्दे की चर्चा की थी. नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन पर इसके लिए दबाव बनाया जाता रहा है. देश में साल 1931 के बाद से जातीय आधार पर कभी जनगणना नहीं कराई गई. इस फैसले को चुनावी साल में विपक्ष से बड़ा मुद्दा छीनने के लिए नीतीश कुमार के बड़े कदम की तरह इसे देखा जा रहा है.
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक बिहार की राजनीति में पिछड़ी जातियों का प्रभाव ज्यादा है. जातिगत जनगणना के फैसले को लेकर नीतीश ने पहले से अपने पाले में वोटबैंक को जोड़े रखने और बाकियों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए यह कदम आगे बढ़ाया है. इससे पहले उन्होंने अल्पसंख्यक वोटों को एकजुट करने के लिए भी एनआरसी को लेकर एक फैसला किया था.
नागरिकता संशोधन कानून के बाद एनआरसी और एनपीआर को लेकर विपक्ष लगातार सीएम नीतीश कुमार पर हमलावर होता रहा है. नीतीश ने मंगलवार को विधानसभा में प्रस्ताव पास कर बिहार में एनआरसी लागू नहीं करवाने और साल 2021 की जनगणना में दस साल पहले के आधार पर ही एनपीआर करवाने का फैसला कर विपक्ष को चुप करवा दिया था.