नई दिल्ली: वैश्विक अर्थ व्यवस्था पर कोरोना वायरस के कारण सारी दुनिया में अफरा-तफरी मची हुई है. सारी दुनिया के शेयर बाजरों में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. भारत भी इससे अछूता नहीं है. भारत के दर्जनों बैंक दिवालिया होने की कगार पर खड़े थे. कोरोना वायरस के कारण आई मंदी के कारण यह कब तक दिवालिया हो जाएंगे कहना मुश्किल है.
पिछले एक वर्ष में केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर बैंकों का विलय राष्ट्रीयकृत बैंकों में कराकर उन्हें दिवालिया होने से तो बचा लिया है. हाल ही में बैंक के 49 फीसदी हिस्सेदारी स्टेट बैंक ने खरीदकर यस बैंक को बचाने का प्रयास कर रहा है. इसको लेकर सारे देश में चिंता बढ़ गई है. पिछले एक दशक में शेयर बाजारों में भारतीय बैंकों, जीवन बीमा निगम, वित्तीय संस्थाओं तथा म्युचल फंड का अरबों रुपया निवेश किया गया है.
2008 के बाद अमेरिका की आर्थिक मंदी के बाद भारत का शेयर बाजार मुनाफा वसूली का केंद्र बन गया था. जब जब शेयर बाजार मुनाफा वसूली के कारण गिरावट में आया. शेयर बाजार की गिरावट को रोकने के लिए केंद्र सरकार के दबाव में शेयर बाजार में बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों का निवेश बढ़ता चला गया.
पीएफ जैसे संस्थान का पैसा भी केंद्र सरकार ने शेयर बाजार में लगवा दिया. 2010 में मुंबई स्टाक एक्सचेंज का सेंसेक्स 2100 पर था जो 2020 में 42000 के स्तर को छू गया. पिछले 1 दशक में शेयर बाजार के माध्यम से देश के वित्तीय संस्थाओं की जो लूट हुई है. अब उसके दुष्परिणाम सामने दिखने लगे हैं. पिछले 5 वर्षों में शेयर बाजार में सूचीबद्ध सैकड़ों कंपनियां दिवालिया होने की कगार पर थी. भारत की कंपनियों ने कंपनी का पैसा विदेशों में निवेश कर दिया था. वड़ी संख्या में पिछले 5 वर्षों में भारतीय नागरिकों ने विदेशी नागरिकता लेकर भारतीय वाजार के माध्यम से जमकर मुनाफा वसूली की है.
बैंकों से ली गई कर्ज की राशि को कंपनियां चुका नहीं रही थी. रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन ने सरकार को गड़बड़ी रोकने जो सुझाव दिए थे. सरकार ने नहीं माने. उलटे रघुराम राजन को ही चलता कर दिया. बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ता चला गया. सैकड़ों कंपनियों का कई लाख करोड़ रुपयों का ऋण सरकार ने राइट आफ कर दिया. सरकार और बैंक उनके नाम बताने को तैयार नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने नाम उजागर करने का निर्देश सरकार को दिया. इसके बाद भी नाम उजागर नहीं किए गये. एनपीए की राशि अब बड़कर 10 लाख करोड़ के स्तर को छू रही है. इसके बाद भी सरकार के कानों में जूं नहीं रेंग रही है. उलटे सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े बैंकों में, दिवालिया होने वाले बैंकों का विलय कराकर सरकार ने इन दोनो बैंकों की आर्थिक दिवालिया की कगार पर ढकेल दिया है.
बैंकों, भारतीय जीवन बीमा निगम एवं पीएफ जैसी संस्थाओं से भारी निवेश शेयर बाजार में कराया गया. शेयर बाजार में निवेश होने से बैंकों की जो बेलेन्स शीट अभी अच्छी दिख रही है. वह शेयर बाजार में आई गिराबट के बाद खराब होते देर नहीं लगेगी. शेयर बाजार का सेंसेक्स 35000 के नीचे आने पर भारतीय बैंकों की स्थिति काफी खराब होगी. इन सबकी बेलेन्स शीट घाटे में चली जायेगी.
भारतीय बैंक पिछले एक दशक में शेयर बाजार के लगातार बढ़ने से कागजों में भारी मुनाफा कमा रहे थे. अब शेयर बाजार में लगातार गिरावट चल रही है. वैश्विक सपोर्ट भी मिलना अब भारत के शेयर बाजार में संभव नहीं है. ऐसी स्थिति में 35000 के नीचे शेयर बाजार के आने पर जिस तरह 2008 में अमेरिका में सैकड़ों बैंक दिवालिया हुए थे. लगभग वही स्थिति देश के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की बन गई है.
भारत सरकार को समझना होगा, भारत के बैंकों में करोड़ों नागरिकों की बचत का पैसा जमा होता है. यही पैसा बैंक और वित्तीय संस्थान शेयर बाजार, कंपनियों एवं अन्य को लोन देने में करते हैं. कंपनियों की आर्थिक स्थिति काफी खराब है. वह अपना कर्ज नहीं लौटा पा रही है. जिनके कारण बैंकों का एनपीए हर साल बढ़ता ही जा रही है.
शेयर बाजार में बैंकों ने जिन कंपनियों के शेयरों में निवेश किये थे. उन कंपनियों के शेयरों के दाम बड़ी तेजी से गिर रहे हैं. इसी तरह भारतीय जीवन बीमा निगम से करोड़ों नागरिकों ने पालिसी ले रखी है जो प्रीमियम की किस्ते कई वर्षों से जमा कर रहे हैं. कर्मचारियों का पैसा पीएफ में जमा होता है. पीएफ ने भी शेयर बाजार में पैसा लगा दिया है. ऐसी स्थिति में शेयर बाजार की गिरावट में बैंकों, भारतीय जीवन बीमा निगम सहित अन्य वित्तीय संस्थाओं तथा पीएफ में आम लोगों की जमा राशि को वापस कर पाना उपरोक्त संस्थाओं के लिए शायद संभव नहीं होगा.