रांची: आदि शक्ति के चौथे स्वरूप का नाम देवी कुष्मांडा है. इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है. कुष्मांडा का अर्थ है कुम्हड़े. मां को बलियों में कुम्हड़े की बलि सबसे ज्यादा प्रिय है. इसलिए इन्हें कुष्मांडा देवी कहा जाता है. मां कुष्मांडा देवी की आराधना से रोग-शोक समाप्त हो जाते हैं.
ऐसा है मां का स्वरुप
कुष्मांडा देवी की आठ भुजाएं हैं, जिनमें कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, शंख, चक्र, गदा और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है. मां के पास इन सभी चीजों के अलावा हाथ में अमृत कलश भी है. इनका वाहन सिंह है और इनकी भक्ति से आयु, यश और आरोग्य की वृद्धि होती है.
मंत्र
या देवि सर्वभूतेषू सृष्टि रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
माता कुष्मांडा के दिव्य रूप को मालपुए का भोग लगाकर किसी भी दुर्गा मंदिर में ब्राह्मणों को इसका प्रसाद देना चाहिए. इससे माता की कृपा स्वरूप उनके भक्तों को ज्ञान की प्राप्ति होती है, बुद्धि और कौशल का विकास होता है. देवी को लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चूड़ी भी अर्पित करना चाहिए.
पूजा
देवी योग-ध्यान की देवी भी हैं. देवी का यह स्वरूप अन्नपूर्णा का भी है. उदराग्नि को शांत करती है. इसलिए, देवी का मानसिक जाप करें. देवी कवच को पांच पढ़ना चाहिए.