रांची: वैश्विक महामारी कोरोना ने व्यापारी वर्ग एवं उत्पादक वर्ग के लंबे समय से चल रहे संघर्ष को धरातल पर ला खड़ा किया है. विश्व में जब कभी कोई आपदा आती है तो सबसे ज्यादा प्रभावित मेहनतकश और मजदूर वर्ग ही होते हैं. करोना के कारण एक और जहां मेहनतकश मजदूर जान की परवाह किए बिना पेट और परिवार के लिए सड़कों पर हैं, अपने अनिश्चित भविष्य के कारण व्याकुल और उद्वेलित हैं वहीं दूसरी ओर लोगों का पेट भरने वाले किसान अपनी मेहनत की उपज को औने-पौने दामों में बेचने के लिए बाध्य हैं. कुछ किसान ऐसे भी हैं जो लागत का आधा मूल्य मिलने पर संतोष कर ले रहे हैं.
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उपभोक्ता भी परेशान
उपभोक्ता भी दिनचर्या की आवश्यक सामग्री दोगुने तिगुने दामों में भी इंतजाम करने के जद्दोजहद में लगे हुए हैं. करोना ने रसोई घर का मेनू बदल दिया है. कहीं-कहीं तो एक शाम का भोजन ही सूची से बाहर हो गया है. भारत में लगभग 20 करोड़ लोग प्रतिदिन कमाने और खाने वाले हैं. उनकी स्थिति तो दयनीय है. आनंद विहार के भीड़ ने इसे उजागर कर दिया है. निम्न मध्यम वर्ग भी बीमारी के साथ-साथ आर्थिक अनिश्चितता को लेकर चिंतित है.
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जमाखोरी और मुनाफाखोरी चिंता का विषय
यदि खीरा, टमाटर, गाजर, गोभी आदि सब्जियां खुदरा बाजार में 10 से ₹15 किलो बिक रहे हैं तो प्याज ₹100 और आलू ₹30 के करीब पहुंच गया है. इसका निहितार्थ चिंतित करने वाला है. यह एक वर्ग विशेष के व्यवहार को इस संकट की घड़ी में उजागर कर रहा है. सभी व्यापारी जमाखोर और मुनाफाखोर नहीं हैं. लेकिन यदि संचित किए जाने वाली सामग्रियों के दाम बढ़े हैं तो इसके लिए व्यापारी वर्ग अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते. वह कह सकते हैं की आवक कम थी इसलिए दाम बढ़ा लेकिन लोग भी समझ रहे हैं.
संकट का सामना एकता के द्वारा ही संभव है. मुनाफा छोड़ लोगों को सहयोग की भावना परिस्थिति अनुरूप है.