नीता शेखर( साहित्यकार व समाज सेवी),
रांची: आज पूरा संसार करोना के वायरस से डरा- सहमा हुआ है. कैद पर पूरी जिंदगानी है लेकिन यह कैद भी कई मायनों में काफी अहम है. इसे कैद कहना भी मुनासिब नहीं. क्योंकि जिंदगी जिंदादिली का नाम है क्योंकि जिंदगी न मिलेगी दुबारा.
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यह वक्त कई मायनों में अहम है. यह वक्त है पारिवारिक परंपराओं को समेटने का. अपनों को अपनापन देने का. भागदौड़ भरी जिंदगी से दूर यह वक्त जिंदगी जीने का है. कुछ सप्ताह पहले तक बेपरवाह जिंदगी जीने की गाड़ी चल रही थी. लेकिन इस जिंदगी को सहेजने का वक्त है. घर में फिर से रौनक आ गई है बशर्ते घर में रहते हुए भी हम लोगों को यह नहीं भूलना है कि हमें कुछ सावधानियां भी बरतनी हैं. आप उसका पालन अवश्य करें. कहते हैं-
संयम भी जरूरी
कोरोना वायरस से बचने के लिए कई नौकरियों में वर्क फ्रॉम होम का तरीका निकाला गया है. अभी तक एक व्यक्ति के लिए नौकरी करने का मतलब था, एक नियत समय पर तैयार होकर एकाध घंटे की यात्रा करके ऑफिस पहुंचना, वहां अपना निर्धारित काम करना और कुल आठ-दस घंटे बाद घर लौटना.
लौटते हुए उसके जेहन में घर पर इंतजार करते बच्चों की तस्वीर कौंधती है लेकिन भागदौड़ से निकलकर घिरे हुए, स्थिर जीवन में प्रवेश करना कोई आसान काम नहीं है. एक खास अनुशासन में बंधा शरीर और मन स्थितियां बदलते ही परेशानियों से घिर जाता है. पता चलता है, घर के मुखिया के घर में रहने से औरों की दिनचर्या प्रभावित हो रही है.
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गृहिणी को बार-बार चाय बनानी पड़ रही है. मुखिया लंच का टाइम आगे बढ़ाता जा रहा है क्योंकि ऑफिस से कभी भी कॉल आ जाता है. हमेशा चहल-पहल में रहकर एकांत के लिए तरसते लोग एकांत मिलते ही मनहूस अकेलेपन से घिर जाते हैं.
घर के लोगों से भी कितनी बात की जाए ? पता चलता है, घर से काम करना लोहे के चने चबाने जैसा है, क्योंकि बच्चों के लिए तो आप छुट्टी पर हैं.
कई बार लगता है जैसे दफ्तर से ज्यादा समझौते घर में करने पड़ रहे हैं. दो-चार दिन तो जैसे-तैसे निकल जाएंगे, लेकिन लॉकडाउन अगर लंबा चल गया तो ? यह भी संभव है कि हालात सुधर जाने पर भी कंपनियां वर्क फ्रॉम होम को अपने लिए बेहतर मानकर इसे ही प्रमोट करने लगें तो अच्छा यही होगा कि आप घर में अपने कामकाज को एक तरतीब दें और यहां अपने पर्सनल स्पेस के लिए भी कुछ गुंजाइश बनाएं.
इसके लिए हमें काम और बाकी गतिविधियों के बीच एक साफ सीमारेखा खींचनी होगी. दुकानदारों और होम क्लिनिक चलाने वाले डॉक्टरों की जीवन शैली से हम शायद इस मामले में काफी कुछ सीख सकें