रांची: आज इस महामारी रुपी विषमता से भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व त्रस्त हो गया है. और विज्ञान मेडिकल साइंस भी समस्या से निजात हेतु अनेकों उपचार ढूंढ रहा है. परन्तु सही उपचार नहीं मिल पा रहा है.
वैसे संसार में हर जीवात्मा किसी न किसी रुप से दुःखी है. वह दुख तीन प्रकार से होता है. आदिभौतिक, आदिदैविक और आध्यात्मिक.
जिनका उपचार निन्मलिखित रुप से है-
- आदिभौतिक- मनुष्य, पशु एवं स्थावरादि और ज्वरपीडा इत्यादि उपचार- विज्ञान डॉ वैध अथवा मेडिकल साइंस से
- दूसरा (आदिदैविक)- शीतोष्ण, वर्षादि एवं प्राकृतिक आपदा उपचार- दैवीय शक्तियों से अर्थात ईश्वरीय कृपा से
- तीसरा (आध्यात्मिक)- काम, क्रोध लोभादि से उपचार- योग से एवं ध्यान से जो मनुष्य से ही संभव है.
Also Read This: संक्रमित महिला के संपर्क में आये लोगों की तलाश शुरू
संसार में कोई भी प्राणी अकर्मा नहीं रह सकता है. न हि कश्र्चित्क्षणंमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्. एक क्षण के लिए भी जीव कर्म से वंचित नहीं रह सकता और उसी कर्म से पाप और पुण्य बनता है.
जिसका हमें भान तक भी नहीं होता है. पाप कब और पुण्य कब. जिसका फल जीवात्मा को किसी न किसी रूप में भोगना पड़ता है.
जब अज्ञानता वश या ज्ञान वश हमसे बड़े रुप में अपराध जैसे चलते-फिरते कीड़ों मकोड़ों का पैर के नीचे आना जैसे लाखों जीवात्मा की हिंसा इत्यादि अनेकों अपराध अनजाने में हो जाते हैं.
जबकि हम शरीर को मार सकतें हैं आत्मा को नहीं.आत्मा ही सबसे सुक्ष्म है.
वेद कहता है- “बालागृशतभागस्य शतधा कल्पितस्य च”. बाल के अग्रभाग के हजार से भी अधिक भाग करेंगे उससे से भी सूक्ष्म है जीवआत्मा इसलिए वही आत्मा वायरस के रुप में जाती है.
और अत्यधिक घृणित कर्म से व अत्यधिक गंदगी से कीटाणु उत्पन्न होते हैं. और वही स्पर्श से छूत की बीमारी बन जाती है.
और वायरस के रुप में भी फैलती है.और यही कोरोना वायरस महामारी है. संसार पंच भूतों से बना हुआ है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश, जिनमें से वायु किसी भी चीज को समाप्त नहीं कर सकता है.
वायु का कार्य फैलाने का है. और ऊर्जा प्रकाशस्वरुप अग्नि किसी चीज को भस्म कर परिवर्तित कर देता है. इसलिए यह महामारी प्राकृतिक आपदा के रुप में हमारे समक्ष उभरकर आती है.
जिसका उपचार केवल दिव्यात्मा भगवान से ही सम्भव हो सकता है. आज यही दैवीय प्रकोप से पूरा संसार त्रस्त है. आदि काल से भारतवर्ष आध्यात्मिकता का केंद्र रहा है. हमारे आदि ऋषि-मुनियों ने वेद वर्णित तथा अपनी तपस्या के बल पर अनेकों भौतिक और आध्यात्मिक साधन हम जीवों के कल्याण के लिए प्रदान किये हैं.
जिसे आज हम भूल गये हैं और भौतिकतावाद को ही सर्वोपरि मान रहें हैं. आज जो मानव सर्वश्रेष्ठ और बुद्धिमान हो कर सब जीवों पर शासन कर अपने विवेक के बल पर बंधी बना देता है.
वह आज खुद ही बंधनों में हैं और अन्य जीव स्वतंत्र रुप से है. इससे बड़ी विडमंबना क्या है? क्योंकि भौतिक दुख को विज्ञान ठीक कर सकता है, लेकिन दैवीय दुख को भगवान ही ठीक कर सकते हैं.
इसलिए इस आपदा का निवारण हमारे आदि धर्मग्रंथ वेदों में वर्णित यज्ञानुष्ठान इत्यादि से ही संभव हो सकता है. इसलिए सभी लोग समर्पित भाव से प्रार्थना कर वेदोक्त यज्ञों को करनें से निश्चित रुप से समस्या का समाधान होगा.
और अंत में यज्ञ हवन ही एक अन्तिम साधन होगा. क्योंकि वेदानुसार यज्ञौ वै भुवनस्य नाभिः. संसार का केन्द्र अर्थात मूल यज्ञ ही है. यह करने से ही शान्ति होगी और पुनः लोग आध्यात्मिकता की तरफ अग्रसर होगें और संसार में भारत विश्व विजयी होकर विश्व गुरु कहलायेगा.
इसलिए हम इस प्रस्थिति में अपने-अपने घरों में क्षेत्रों में और राज्यों में यज्ञ हवन करेंगे तो समस्या से निजात मिल सकती है. सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः. सर्वे भद्राणि पश्च्यन्तु मां कश्चित दुःखभाग्भवेद्.
सुखी बसें संसार सब दुखिया रहे न कोई. यही अभिलाषा हम सबकी भगवन पूरी हो. आज क्वारंटाइन हुए लोगों को फिर से निशुल्क खाना बनाकर डिस्टिक एडमिनिस्ट्रेशन के दिशा निर्देश के अनुसार स्वच्छता का पालन करते हुए अपनी टीम के साथ बनाई और वितरण के लिए डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन को सौंप दीया.
कोई भी अपनी आत्मा, तन-मन और धन से मदद के लिए आगे आना चाहता हो तो मेरे से संपर्क करें .
धन्यवाद: आपकी सेविका श्रीमती रविंद्र कौर (गोल्डन जिम सिर्फ महिलाओं के लिए )