नीता शेखर( समाज सेवी),
रांचीः किसी भी बीमार व्यक्ति की सेवा नर्स और पारा मेडिकल स्टॉफ जिस निष्ठा, आत्मीयता, त्याग और समर्पण के साथ सहजता से करते है, वैसे तो शायद परिवार का सदस्य भी न करे.
मरीज को नकारात्मक सोच से निकालकर उसे एक नया जीवन देने में नर्स की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अगर हम प्राचीन काल में गौर करें तो फ्लोरेंस नाइटेंगल का नाम सामने आता है. समृद्ध परिवार की इस सड़की ने आलस जीवन से असंतुष्ट होकर परिचर्या (नर्स) का अध्ययन किया और लंदन में रोगियों के लिए एक परिचर्या भवन खोला.
1845 ई. में क्रीमिया में युद्ध छिड़ने पर और युद्ध सचिव के कहने पर वे 34 वर्ष की आयु में ही 38 नर्सों के दल के साथ सेवा-शुश्रूषा के लिए युद्धस्थल पर गई थीं. स्वास्थ्य विज्ञान के सिद्धांतों को उन्होंने अस्पताल के प्रबंध में लागू किया और उसके लिए जो भी कठिनाइयां या अड़चनें उनके मार्ग में आईं. उनका उन्होंने वीरता और समझदारी से निरंतर सामना किया. देश में नर्सिंग कॉलेज मद्रास में 1854 में और बंबई में 1860 में खुले. 1855 में लेडी डफरिन फंड की स्थापना हुई थी, जिसकी सहायता से कई अस्पतालों के साथ परिचर्या के शिक्षणालय खोले गए और उनमें भारत की स्त्री का नर्सों के रुप में प्रशिक्षण का श्रीगणेश हुआ. अब तो देश के प्राय: सभी बड़े अस्पतालों में नर्सों के प्रशिक्षण की व्यवस्था है.
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क्या है दायित्व
फ्लोरेंस नाइटिंगेल के समय से लेकर अब तक इस क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है जिसमें नर्सिंग में काफी परिवर्तन हो गए हैं. अब यह धार्मिक व्यवस्थापकों के प्रोत्साहन से संचालित एवं अनभिज्ञ व्यक्तियों द्वारा दया-दाक्षिण्य-प्रेरित सेवा मात्र नहीं रह गया है, अब तो यह आजीविका का एक साधन है, स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण में नर्स को बहुत महत्वूपर्ण कार्य करना पड़ता है.
आज देश गंभीर महामारी से जूझ रहा है. ऐसे में नर्स पारा मेडिकल स्टाफ को शामिल ना करें तो यह नाइंसाफी है. सेवा भाव में नर्स और पारा मेडिकल स्टाफ की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है. दिन-रात सेवा कर देश को गंभीर संकट से निकालने के लिए कमर-कस ली है. जबिक देश में नर्स और पैरामेडिकल स्टॉफ के लिए इतनी सुविधाएं नहीं है और उसके बावजूद अपने जी जान से दूसरों की सेवा में लगे हुए हैं क्योंकि उनका धर्म ही सेवा है. हमें भी उनका साथ देना चाहिए और सम्मान करना चाहिए क्योंकि वह बिना हथियार और सुख सुविधाएं नहीं रहने के बावजूद भी जान से मरीजों की सेवा में तत्पर रहते हैं और ऐसे लोग सब कुछ दांव पर लगा कर कुर्बानी देने को तैयार रहते है.