समर आलम,
रांची: जैसा कि आप सभी जानते हैं कि कोरोना वायरस से दुनिया के अन्य देश एवं भारत एक जंग लड़ रहा है और इस जंग को जीतने के लिए जरूरी है कि सभी मानवों को एकजुट होकर लड़ना है.
ये संकट जो मानव जीवन पर आन पड़ा है यह चीन की देन है. बाकी विकसित और विकासशील देशों के मुकाबले भारत सरकार ने काफी ठोस कदम उठाए हैं और यह सराहनीय है.
शुरुआती दौर में मन में एक संतोष था कि आपदा के वक्त लोग एक होकर देश को कोरोना मुक्त कराना चाहते हैं मगर यह संतोष चंद दिनों का मेहमान निकला. लोगों को अब सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हिंदू मुस्लिम करते देखकर मन दुःखी हुआ. लिखना नहीं चाहती थी मगर आज लिखूंगी क्यूंकि लिखना जरूरी है.
हमारा भारत महान है यही पढ़ा था बचपन से, बेशक महान रहना भी चाहिए. उस महानता कि वजह यह कि यहां भिन्न- भिन्न प्रकार के धर्म – जातियां हैं फिर भी यहां अनेकता में एकता है. किंतु इस महामारी के समय हमें क्या देखने को मिलता है? लोग एक साथ होने की जगह एक दूसरे के धर्मों पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं.
पहले मुस्लिम वर्ग की बात होनी चाहिए. तबलीगी जमात के द्वारा बहुत बड़ी गलती की गई है और इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता है. जो मुस्लिम इनके बचाव में दलील दे रहे हैं वो भी निःसंदेह गलत कार्य कर रहे हैं. य
ह एक नागरिक की खुद की नैतिक जिम्मेदारी होती है कि जब आप देख रहे हैं कि पूरा विश्व इस महामारी से लड़ रहा है तो आप खुद की और दूसरे की जान को जोखिम में ना डालें तथा भीड़ में शामिल न हो.
परन्तु नहीं आप तो अल्लाह रसूल वाले हैं आपको तो आपके अल्लाह बचा लेंगे और ये तो कहर भी काफिरों पर नाजिल हुआ है. मेरा यह मानना है कि जो मीडिया बता रही है कि इतने लोग छिपे हुए थे और कुछ लोग इनके बचाव में कह रहे हैं कि लोग फसे हुए थे दोनों ही बातें सही नहीं बैठती.
ये लोग अपनी स्वेच्छा से वहां पर थे दिक्कत ये है कि आप वो नहीं जानते हैं ना मानते हैं जो आपकी मूल धार्मिक किताब में है जो इस्लाम सिखाता है, आप वो मानते हैं और जानते हैं जो ये मौलाना सिखाते पढ़ाते हैं.
आज इस संकट के समय में कौन सी सुरह और आयत है जो इस महामारी से बचा सकेगी आपको? ये मौलाना (कुछ इनमें से सही भी हैं) चाहते ही नहीं कि आप आगे बढ़ कर तरक्की करे और इसी तरह आप इनकी बातों में उलझे रहें. आज मुस्लिम समुदाय पूरे विश्व में घृणा की नजर से देखा जाने लगा है.
वजह यह है कि आप अल्लाह के इस्लाम की जगह मुल्लों के इस्लाम को मानते हैं. जब सरकार ने आदेश दिया है कि धार्मिक स्थल बंद किए जाएंगे तो क्या जरूरत है मस्जिदों में जाकर इकट्ठा होने की? मस्जिदों में जाकर नमाज न पढ़ने से क्या आपकी नमाज अदा नहीं होती? मुस्लिम समुदाय के साथ दिक्कत यह भी है कि ये खुद को अपनी उन्हीं कट्टर सोच और रूढ़िवादी विचारों में जकड़े हुए हैं और आगे नहीं बढ़ना चाहते.
दुःख के साथ कहना पड़ता है कि इन्हें राजा राजमोहन राय जैसे व्यक्ति नहीं मिले जो कि कुरीतियों को खत्म कर सके मुस्लिम समाज से. गलती हुई है उसे स्वीकर करे और जो लोग जमात में शामिल हुए थे खुद से आगे आएं और जांच कराएं ताकि सरकार का काम आसान हो सके और बाकी लोगों को संक्रमण से बचाएं.
गलती तो उन लोगों की भी है जो इस समय अपनी मन की भड़ास को निकालने के लिए कुछ भी गलत जानकारी सोशल मीडिया पर फैला रहे हैं. हिंदू समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो पूरे मुस्लिम समुदाय को इसका दोषी मान रहा है. तो जनाब गलती आपकी सोच में है.
इससे पहले भी संक्रमण के कई केस आए परन्तु तब तो यह नहीं कहा गया कि इसके लिए हिंदू जिम्मेदार है. आपके दोषी तबलीगी जमात वाले लोग हैं न कि पूरा मुस्लिम समुदाय.
तो अपने मन की भड़ास को गलत दिशा देकर लोगों को सांप्रदायिक न बनाएं. ये बात कहना कि ‘ये कोई अदबुल कलाम थोड़ी हैं’ से आप क्या दर्शाना चाहते हैं? क्या हर व्यक्ति अब्दुल कलाम हो सकता है? यह संभव तो नहीं है ना परन्तु हम यह अपेक्षा जरूर कर सकते हैं कि लोग अपनी जाहिलियत को समेटकर एक सभ्य और जिम्मेदार नागरिक की तरह रहें.
जो लोग देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकते बेशक दंड पाने के लायक हैं और रही बात ताली, थाली बजाने की या फिर दिया या टॉर्च जलाने की तो मेरा यही मानना है कि ये सब करने से आपके धर्म को कोई हानि नहीं पहुंचेगी न आपका कुछ नुकसान होगा.
विनती है कि इसे धर्म से ना जोड़े, इन्हीं सब सोच की वजह से देश पीछे जा रहा है और पीछे ना करें. इसे मैंने आज इसलिए लिखा है ताकि लोग आइना देखें और खुद में कमी निकालकर सुधार करें.
आरोप लगाना बहुत सरल कार्य है, किंतु उसे संवैधानिक तरीके से सही करना थोड़ा कठिन कार्य है. मैं किसी विशेष धर्म को अच्छा या बुरा नहीं कह रहा हूं तो कृपया होगी आप लोगों की भी कि गलत विश्लेषण ना करें.
अपना और अपनों का ख्याल रखें. घर में रहें, सुरक्षित रहें. हमें इस महामारी से मिलकर लड़ना है और देश को कोरोना मुक्त करना है.