नीता शेखर
रांची: आज चलिए हम करोना वायरस को पीछे छोड़ते हुए जरा आत्मा परमात्मा की बात करते हैं. “मनुष्य जीवन बड़ा ही मूल्यवान होता है मनुष्य कौन है? मनुष्य का परिचय क्या है? उसी मनुष्य से बनता है मैं, मैं कौन हूं? कौन हूं मैं? क्या मैं एक आत्मा हूं. जन्म तो मेरे मां बाप ने दिया तो मैं उनकी संतान हूं क्या यही हमारा परिचय है. नहीं यह हमारा परिचय नहीं है तो हमारा परिचय क्या है ? मैं एक आत्मा हूं.
आत्मा कभी भी मरता नहीं. वह एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को धारण कर लेता है. आत्मा की तीन शक्तियां है ” मन, बुद्धि और संस्कार. मन जो विचार पैदा करता है, बुद्धि जो निर्णय लेता है, और संस्कार जो हमारे निर्णय द्वारा किए हुए कर्मों का फल देता है!” अगर हम अपने मन और बुद्धि को कंट्रोल नहीं कर पाते तब हम अपने संस्कार को भी खो देते हैं! आत्मा तो शांत शीतल है. हम अपने आसपास से ग्रहण किए हुए संस्कारों से आत्मा को भी दुखी करते हैं मगर हम सही समय पर निर्णय ले ले तो हमें कष्ट झेलने ही नहीं पड़ेंगे. हमारा शरीर जो है पांच तत्वों से बना हुआ हार्ड मास का पुतला है.
ऐसे भी हम कह सकते हैं कि “हमारा शरीर एक कार है और आत्मा इसका रूपी शरीर का ड्राइवर” इस धरती पर तरह-तरह की आत्मा है और उसी तरह से भिन्न भिन्न प्रकार की ड्राइवर. उन सभी ड्राइवरों का एक ही मुख्य ड्राइवर होता है परमपिता परमात्मा जो सभी का कल्याण करते हैं. हम सभी उसी परमात्मा के बच्चे हैं. अपने सभी बच्चों का एक समान ध्यान रखते हैं. वह सभी आत्माओं की एक जैसी एक समान रक्षा करते हैं. कहते हैं हम अपने किए हुए गलतियों से उनका प्यार खो देते हैं ,कहते हैं जिस तरह सूरज की किरणें एक समान गर्मी पहुंचाती है. बारिश की बूंदे भी सभी पर एक समान ही पड़ती है, ठंड भी सभी पर एक समान ही ठंडक पहुंचाती है. ठीक उसी प्रकार परमात्मा भी सभी का एक समान ही ख्याल रखते हैं. मगर यह आत्मा रूपी इंसान अपने आसपास से ग्रहण किए हुए संस्कारों से अपने पूर्व जन्म के किए हुए कर्मों से अपने कर्मों का फल भोग कर ही जाता है. जब तक उसके कर्मों का लेखा जोखा खाली ना हो जाए तब तक उसे बार-बार इस धरती पर जन्म लेना पड़ता है क्योंकि आत्मा कभी मरती नहीं.
पांच तत्वों से बनी हुई शरीर को धारण कर लेती है. परमात्मा कहते हैं बच्चे तू चिंता मत कर मैं बैठा हूं तू अपनी सारी चिंताओं को मुक्त कर आगे बढ़. पीछे मुड़कर मत देख, यही जीवन की सच्चाई है जो खोया और जो पाया वह तेरे कर्मों का लेखा जोखा था. जो बीत गया उसे भूल जा. कम से कम आने वाले वक्त को सुधार ले. जो बीत गया वह भूतकाल था और जो आने वाला है वह भविष्य काल है तो कम से कम अपने आने वाले भविष्य को ही सुधार ले, कहते हैं कि हम सभी खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाएंगे. जाएगा तो केवल हमारे द्वारा किए हुए कर्मों का लेखा जोखा और जब तक हमारे कर्मों का लेखा जोखा साफ नहीं होता तब तक हमें इस धरती पर आना पड़ता है. इंसान कितना मूर्ख होता है. इस माया रुपी संसार में ही रहता है आज इंसान को जरूरत है अपने कदम रखने का वह अपना कदम बाहर ले जाना चाहते हैं.
माना कि आज चारों तरफ अंधेरा है पर कुछ दिनों बाद रोशनी तो आएगी ही. आज को कठोर नहीं किया तो पांच तत्वों से बने इस शरीर को आप खो देंगे जरूरत है इस समय अपने मन पर कार रूपी शीशा चढ़ाएं और आत्मा रूपी ड्राइवर को बंद कर दें ताकि हम कल का सवेरा उगते हुए सूरज की छटी हुई अंधेरे की रोशनी में स्वागत कर सके और सभी के जीवन में रोशनी भर सके. अंत में मैं यही कहना चाहती हूं कि संयम रखें आज की स्थिति में हमारे यही कर्तव्य है अपने मन के मनोबल को ऊंचा रखें. हम सब तो ड्रामा के किरदार है बस जरूरत है कि परदा गिरने ना दे.