नीता शेखर,
रांची: जिंदगी चाहती कुछ और है और होता कुछ और है. किसे पता है कब कहां और कैसे समय करवट ले ले ऐसा ही कुछ हुआ था बुलबुल के साथ. बुलबुल भी उसी समय की शिकार थी. बचपन से कुछ कर पाने की चाहत उसमें थी और वह कर नहीं पाई. करना बहुत कुछ आती थी पर मगर समय ने साथ नहीं दिया.
समय अपनी गति से बढ़ रहा था. बुलबुल भी समय के साथ बढ़ रही थी. आम लड़कियों की तरह उसकी भी कई सपने थे. वह अपने सपनों को साकार करना चाहती थी पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ क्योंकि उसका जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. वैसे तो किसी चीज की कमी नहीं थी पर तब कमाने वाले एक होते थे और खाने वाले व्यक्ति ज्यादा होते थे.
बुलबुल खूबसूरत भी बहुत थी. खूबसूरती के साथ साथ बिल्कुल अपने नाम की तरह, दिनभर फुदकती रहती थी. सभी का काम कर दिया करते थी. कभी ना कहना सीखा ही नहीं था. उसकी खूबसूरती के चर्चे हर जगह होने लगे थे. इसी बीच कोई उसके लिए रिश्ता लेकर आया. मां बाप को भी रिश्ता अच्छा लगा फिर उन्होंने उसकी शादी कर दी.
अब यहां से उसकी नई जिंदगी की शुरुआत हुई. यहां भी अपने व्यवहार से उसने सभी का दिल जीत लिया मगर वह जिसके लिए यहां आई थी उसी ने, उसको नहीं समझा. वह कभी भी उसके मन को समझ नहीं पाता था. यहां भी उसी इच्छाओं के “पर” काट दिए गए. उसने जो सपना देखना था यहां भी पूरा नहीं हुआ. देखते ही देखते बुलबुल दो बच्चों की मां बन गई. अब उसका सारा समय बच्चों में बीतने लगा. फिर बच्चे भी बड़े हो गए. वो भी अपने कामों में व्यस्त हो गए.
बुलबुल अकेली हो गई थी, बिल्कुल अकेली. अभी भी वह अपने सपने साकार करना चाहती थी परंतु कर नहीं पा रही थी क्योंकि किसी के पास उसके लिए वक्त नहीं था.
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अचानक एक फोन कॉल ने मुझे हिला कर रख दिया. मौसी मां नहीं रही. क्या ? मेरी तो आवाज ही बंद हो गई. अरे ऐसा कैसे हो सकता है. नहीं नहीं मैंने जरूर कुछ गलत सुना है. करुण वेदना को मन में छुपाते हुए मैं उसके घर गई. जब मैं उसके घर पहुंची तो उसकी बेटी ने एक खत ला कर दिया. उसने कहा मां ने कहा था कभी भी मौसी आए उसे जरूर यह दे देना. मैंने कांपते हुए हाथों से खत को खोला. मुझे बहुत ही उत्सुकता हो रही थी. मैंने तुरंत खोल कर पढ़ना शुरू किया.
लिखा था “नीति तू इतना बता मेरे नाम बुलबुल क्यों था? क्या मैं बुलबुल की तरह उड़ पायी? मेरे पर तो बचपन में ही काट दिए गए थे. सोचा चलो शादी के बाद अपने सपने को पूरा कर लूंगी पर यहां भी मेरे “पर” काट दिए गए ! मैं उड़ना चाहती थी नीति. अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी पर अपने सपनों की दुनिया में उड़ान नहीं भर सकी. अब मैं जा रही हूं नीति अपने सपनों की दुनिया में जहां मेरे “पर” काटने वाला कोई नहीं होगा. पढ़कर मेरी आंखें बरसने लगी.
सच ही तो कहा है बुलबुल ने, उस दुनिया में उसका कोई “पर” नहीं काट सकता ! सच कहा है लड़कियों को ही सब कुछ क्यों सहन करना पड़ता है. क्या उन्हें सपने देखने का कोई अधिकार नहीं ? उन्हें आसमान में उड़ने का कोई शौक नहीं ?
माना कि आज समय बदल रहा है. सब कुछ बदल रहा है. पर हमारा समाज कब बदलेगा ? कब तक बुलबुल जैसी लड़कियां अपने सपनों की बेदी पर चढ़ती रहेंगी ? आखिर कब तक ? कब बदलेगा यह पुरुष प्रधान समाज ? जबकि इतिहास गवाह है पुरुषों को भी जन्म देने वाली नारी ही है पर नारी अपने लिए कभी इंसाफ नहीं कर पाती……………..