रांची: झारखंड इंडिपेंडेंट स्कूल अलायन्स, रांची ने अपने सभी निजी स्कूलों के अभिभावकों से आह्वान करते हुए कहा है कि वे अपने बच्चों के जीवन निर्माता शिक्षक/शिक्षिकाओं एवं अन्य कर्मचारियों के मान-सम्मान के लिए आगे आए और मासिक शुल्क जमा करके उनके अनमोल सेवाओं का समर्थन करें.
जहां समस्त संसार कोविड-19 प्रकोप के कारण क्षत-विक्षत स्थिति में है वैसी परिस्थिति में समाज के प्रत्येक वर्ग को घोर कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है और स्वाभाविक रूप से स्कूली बच्चों के अभिभावक भी इससे अछूते नहीं हैं किंतु विद्यालय में शिक्षकों के वेतन भुगतान न हो पाने की स्थिति में उनमें हीन भावना के जन्म लेने की संभावना है, जो बच्चों एवं समाज के लिए शुभ नहीं है।।
अतः सभी सम्मानित अभिभावकों से (जो भुगतान करने में सक्षम हैं) आग्रह है कि वो आगे बढ़कर शुल्क जमा करें. जो वर्तमान में भुगतान की स्थिति में नहीं हैं, उन्हें अतिरिक्त समय दिया जाएगा.
संस्था ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा शुक्रवार को दिये बयान का स्वागत करता है, जिसमें उन्होंने निजी स्कूलों से लॉकडाउन के दौरान एक साथ तीन महीने की फीस न लेने की बात कही है.
संस्था ने अभिभावकों को आश्वस्त किया है कि सभी स्कूल अभिभावकों के साथ हैं एवं उनको फीस के लिए दबाव नहीं दिया जायेगा.
वहीं दूसरी ओर संगठन ने झारखंड सरकार द्वारा लिए गए फीस माफ़ी के निर्णय पर खेद जताया है और कहा कि अगर सरकार को ऐसे कोई आदेश जारी करने से पहले स्कूल संचालकों के किसी एसोसिएशन या प्रतिनिधियों को विश्वास में लेकर निर्णय लेने से इस प्रकार के आदेश जारी होते जिस पर न तो स्कूलों को कोई ऐतराज होता और न ही अभिभावकों पर शुल्क का दबाव होता. सभी निजी स्कूल या तो चेरिटेबल हैं या फिर एजुकेशनल सोसाइटी और ट्रस्ट की ओर से संचालित किए जा रहे हैं. अब कोई स्कूल बच्चों से फीस नहीं लेगा तो अपने स्टॉफ की सैलरी कहां से देगा. निजी स्कूलों के कई अन्य खर्चे भी हैं, जिसपर शिक्षा मंत्री या विभाग ने ध्यान दिये बिना आदेश जारी किया है, जो पूरी तरह अन्याय है. अगर शिक्षा विभाग वाकई अभिभावकों को लेकर चिंतित है तो उसे सभी स्कूलों के लिए फंड जारी करने चाहिए जिससे शिक्षकों एवं अन्य कर्मियों का वेतन भुगतान हो सके.
संस्था सरकार से बच्चों को किताबें उपलब्ध कराने हेतु कोई ठोस निर्णय के लिए आग्रह करती है, जिससे सामाजिक दूरी का पालन करवाते हुए, कुछ समय किताब दुकानों या विद्यालय स्तर से व्यवस्था किया जा सके.