चतरा: देश में वैश्विक महामारी का रूप धारण कर चुके कोरोना संक्रमण ने क्या आम क्या खास सभी को परेशान कर रखा है. आम से लेकर खास लोग अपनी स्वस्थ जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं. लेकिन इन सबों के बीच बेजुबानों के जान पर आफत आन पड़ी है. इन्हें चारा तक मयस्सर नहीं हो रहा. ऐसे में अब ये जिंदगी की जद्दोजहद के बीच किसी मशीहे का इंतजार कर रहे हैं ताकि इंसानों की तरह इनके लिए भी कोई दो जून के चारे का जुगाड़ कर दे.
लॉकडाउन में गरीब हो या अमीर हर कोई परेशान है. समाज का निम्न वर्ग और मध्यमवर्गीय परिवार रोजी-रोटी के लिए परेशान हैं. इंसान तो फिर भी फरियाद कर ले रहा है, लेकिन सबसे ज्यादा हलकान बेचारे बेजुबान जानवर हैं. बेजुबानों का दर्द भला समझे भी कौन. जब इंसान के पास खाने के लिए दाना नहीं तो मवेशी को भला कौन खिलाए. इन्हें सड़कों पर यूं ही भटकने के लिए छोड़ दिया गया है. ऐसे में ये कचरे से चुनकर किसी तरह अपना पेट भर रहे हैं. इन मवेशियों का दर्द समझने वाला कोई नहीं है. न तो किसी सामाजिक संगठन ने इनकी सुध ली है और न ही वो लोग जो इन मवेशियों के मालिक होने का दावा करते हैं.
चतरा जिले के सिमरिया अनुमंडल के ग्रामीण इलाकों में हजारों ऐसे परिवार हैं, जो मवेशी पालन करते हैं. गौ-पालन, बकरी-पालन सहित अन्य पशुपालन के माध्यम से अपना रोजगार चलाते हैं. यूं तो जिंदगी भर मवेशी पशुपालकों का पेट पालते हैं, पर वक्त जब पलट गया तो आज मवेशी सड़क पर भटकने के लिए छोड़ दिए गए हैं. इन मवेशियों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. अब जरूरत इस बात की है कि सड़क पर भोजन की तलाश में जहां-तहां भटक रहे मवेशियों की भी समाजसेवी और प्रशासन सुध ले ताकि ये बेजुबान जानवर भी अपना भूख मिटा सके.