-
आदिवासी दर्शन को समझने के लिए सबसे पहले समझना होगा कि आदिवासी कौन है
रांची: रांची के आड्रे हाउस में चल रहे तीन दिवसीय जनजातीय दर्शन पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के अन्तिम दिन आत्मा और पुनर्जन्म पर आधारित परिचर्चा हुई. इस सत्र में आदिवासियों के अपने समाज में आत्मा, मृत्यु और पुनर्जन्म के बारे में क्या धारणाएं है. मृत्यु के बाद क्या होता है किस प्रकार अंतिम क्रिया किया जाता है इन सब पर विस्तार से विद्वानों ने अपने विचार रखे.
अर्जुन राथवा ने बताया कि आदिवासी प्रकृति के रिवाजों और कानून को मानते है. वे किसी धर्म में बंध कर नहीं रह सकते. उन्होंने बताया कि आदिवासियों का त्योहार ऋतु और फसल से संबंधित होते है.
आत्मा का घर में प्रवेश कराया जाता है
डॉ. हरि उरांव ने आत्मा और पुनर्जन्म पर आधारित परिचर्चा में भाग लेते हुए मृत्यु के बाद आत्मा अपने प्रियजनों को समीप देखना चाहता है. मृत्यु के बाद दफनाने और जलाने की विधि होती है. श्राद्ध के पूर्व तक मृतक के लिए खाना पहुंचाया जाता है. आत्मा का घर मे प्रवेश कराया जाता है एवं उन्हें पूर्वजों के आत्मा के साथ जोड़ा जाता है.
मृत्यु के बाद आत्मा अइमोग में चली जाती है
अरुणाचल प्रदेश की डॉ. जमुना बिनि ने निशि जाति के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि मृत्यु के बाद आत्मा अइमोग में चली जाती है. मृत्यु के बाद बूढ़ी महिलाओं द्वरा सिनिमर किया जाता है. इस दौरान मृत व्यक्ति द्वारा समाज के लिए किए गए कार्यों के बारे में गायन के रूप में व्यख्या की जाती है.
मृत्यु के पश्चात आत्मा की आकृति आदम परछाई की तरह होती है
इस सत्र में अंतिम प्रवक्ता डॉ. नीतिशा खलखो ने बताया कि मृत्यु के पश्चात आत्मा की आकृति आदम परछाई की तरह होती है. उन्होंने कहा कि अधिकतर आदिवासी समाज में स्वर्ग और नर्क की अवधारणा नहीं है. उनका मानना है कि जो अच्छे कर्म कर के मृत्यु को प्राप्त किये है वो सुखी रहते है. उसी प्रकार बुरे कर्म करने वालो प्रताड़ना मिलती है.
आदिवासी दर्शन को समझने के लिए सबसे पहले समझना होगा कि आदिवासी कौन है
आज के दूसरे तकनीकी सत्र में डॉ. सुभद्रा ने बताया कि हमें आदिवासी दर्शन को समझने के लिए सबसे पहले समझना होगा कि आदिवासी कौन है. इसे परिभाषित करना होगा. यह एक मान्यता है कि जो आदि में वासी थे वो आदिवासी है. हमे आदिवासी विचारधारा को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है. कोई किस प्रकार कह सकता है कि जो आदिवासी मानते है वह अन्धविश्वाश है या परिकल्पना.
लिंबु समुदाय स्वर्ग और नर्क के बारे में नही मानते न ही पुनर्जन्म के बारे में मानते है. इस सत्र में डॉ. बुद्धि एल खंदक ने लिम्बु समुदाय के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि लिम्बु समुदाय स्वर्ग और नर्क के बारे में नहीं मानते न ही पुनर्जन्म के बारे में मानते है. उन्होंने बताया कि हमारे यहां लैंगिक समानता पर विशेष बल दिया गया है एवं स्त्रियों की पूजा की जाती है.
मेघालय में जल, जंगल, जमीन के साथ-साथ पहाड़ और नदियों को भी पूजा
मेघालय के डॉ. सुनील कुमार ने बताया कि मेघालय में जल, जंगल, जमीन के साथ-साथ पहाड़ और नदियों को भी पूजा जाता है. मेघालय के आदिवासी समूह का मानना है कि ईश्वर द्वारा 7 परिवार को पृथ्वी पर खेती करने को भेजा गया था और पहाड़ से आसमान तक सीढ़ी लगी हुई थी जिससे वे आना जाना करते थे लेकिन ईश्वर का शर्त था कि पृथ्वी पर जाकर झूठ नहीं बोलना है हमेशा सत्य की राह पर चलना है. इसका लोगों ने पालन नही किया जिससे वह सीढ़ी गायब हो गयी. उन्होंने बताया कि मेघालय में अतिथियों का स्वागत पान सुपाड़ी और चूना से किया जाता है.
पृथ्वी के लोग एक है,वातावरण और जलवायु के कारण आया अंतर
जनार्धन गोंड़ ने बताया कि गोंड़ समाज के लोगों का मानना है कि पूरे पृथ्वी के लोग एक है. वातावरण और जलवायु के कारण उनमे अंतर आ गया है.
असुर समुदाय द्वारा सरना स्थल और सखुआ पेड़ की पूजा की जाती है
योगेस्वर सुंग ने असुर समुदाय के बारे में बताया कि इस जाति द्वारा सरना स्थल और सखुआ पेड़ की पूजा की जाती है. आदिवासी पेड़, जानवर और पंछी को अपने कुलदेवता मानते हैं और उसे नुकसान नहीं पहुचने देते.
इस सत्र के अंतिम में असम से आयी दीपावली कुर्मी ने प्रकृति, मान्यताएं एवं कुलदेवता के बारे में बताया उन्होंने कहा कि कई आदिवासी समूह पेड़, जानवर और पंछी को अपने कुलदेवता मानते हैं और उसे नुकसान नहीं पहुचने देते.
तीसरे एवं अंतिम सत्र में सैलजा बाला ने अच्छी और बुरी आत्माओं के बारे में बताया उन्होंने कहा कि मरने के उपरांत आत्मा बुरे और अच्छे रुप में रहते है. उन्होंने कविता के माध्यम से जनजातीय दर्शन पर कहा कि इनकी जीवन पद्धति अलग है ये सहज और सरल स्वभाव के लोग हैं.
कृष्णा शाहदेव ने कहा कि जनजातीय समाज के लोग प्रकृति के सर्वाच्च शक्ति की पूजा करते हैं ये समानता और आपसी समन्वय पर विश्वास करते हैं. जनजातीय दर्शन पर इन्होंने कहा कि यह मूलतः प्रकृति पर निर्भर हैं. जनजातीय जीवन ही जनजातीय दर्शन है यह सदियों से अपने अस्तित्व कि रक्षा करते आ रहे हैं.