राहुल मेहता,
रांची: दुनिया में आदिकाल से नागरिकों के उत्थान और उनके विकास के लिए संसाधन जुटाने हेतु विभिन्न प्रक्रिया रहे हैं. लेकिन सारी प्रक्रियाऐं कहीं ना कहीं बाजार एवं संसाधन से संबंधित रहीं हैं.
सरल शब्दों में एक विचारधारा का मानना है कि अगर रोजगार के अवसर ज्यादा होंगे तो लोगों की आमदनी ज्यादा होगी जिससे विकास के अवसर भी ज्यादा होंगे. जबकि दूसरी विचारधारा का मानना है के यदि लोगों के पास अतिरिक्त संसाधन होंगे तो क्रय शक्ति बढ़ेगी जिससे मांग बढ़ेगी और उत्पादन के अवसर में वृद्धि होगी.
यह देश के विकास में सहायक बनेगी। एक तीसरी विचारधारा है जो कहती है कोई भी विचार स्थाई नहीं होती तथा परिस्थितियों पर निर्भर करती है।
निजी बनाम सरकारी
आजादी के बाद भारत ने समाजवाद के राह को चुना. 70 के दशक तक कल कारखानों, बैंक को तथा उद्योगों के राष्ट्रीयकरण पर विशेष जोर दिया गया. कालांतर में निजी मालिकों के दमन से प्रताड़ित जनता ने इसे तहे दिल से स्वीकार किया और इससे उन्नति का राह बताया. परंतु कुछ ही दशकों में यह प्रयोग ही असफल सब प्रतीत होने लगा. एक ओर जहां निजी उद्योग तेजी से फलने फूलने लगे, वहीं राष्ट्रीय कृत उद्योग घाटे का रिकॉर्ड तोड़ते नजर आने लगे. एयर इंडिया के विनिवेश की प्रक्रिया ने निजी बनाम राष्ट्रीय कृत उद्यमों के बहस को फिर से जीवित कर दिया है. तकनीकी पहलू अनेक हो सकते हैं, परंतु युवा छात्रों से बात करने पर जो तथ्य निकलकर सामने आए वे भी विचारनीय हैं.
12वीं के छात्रों के नजर में यह मुद्दा
उद्यमों की स्थिति निम्न बिंदुओं पर निर्भर करती हैं-
1. मांग एवं बाजार। यह निजी एवं राष्ट्रीयकृत दोनों पर समान रूप से लागू होती है
2. प्रबंधन
3. नवीनीकरण
4. मानव संसाधन की लगन एवं दक्षता
5.दूरदर्शिता
6. बाजार के आवश्यकता अनुरूप लचीलापन
7. त्वरित एवं पारदर्शी निर्णय प्रक्रिया
8. जिम्मेदारी तथा जवाब देही आदि
एयर इंडिया की समस्या प्रबंधन, जिम्मेदारी एवं जवाबदेही निर्णय प्रक्रिया और लचीलापन से जुड़ी हुई ज्यादा प्रतीत होती है, तब विकल्प क्या है? एयर इंडिया के प्रबंधन में बदलाव कर दक्षता, कार्य क्षमता एवं आमदनी में बदलाव किया जा सकता है. अतः सरकार को चाहिए के निजीकरण के बजाय प्रयोग के तौर पर प्रबंधन में बदलाव करें.
देश में इस विचारधारा पर व्यापक समझदारी बनाने हेतु पहल करने की जरूरत है और यह जवाबदेही सरकार की ही है.