लावालौंग : लावालौंग हॉस्पिटल में एकलौता डॉक्टर के सहारे टिका हुआ है, मुख्यालय के दूरवर्ती क्षेत्र में मलेरिया का प्रकोप जोरों पे दिख रहा है. हर गाँव, के हर घर में एक कोई न कोई बुख़ार पीड़ित नज़र आते हैं.सप्ताह में सिर्फ 2दिनों के लिए डॉक्टर आते हैं, बाकी दिनों में मरीजों को देखने वाला कोई नहीं है,लोग जहाँ,-तहा अपने इलाज करा रहे हैं, जब सप्ताह में आते हैं डॉक्टर तो मरीजों का जमावड़ा लग जाता है.ऐसा लगता है कि जैसे कोई बाजार लगी है.
हर मरीज पहले ,पहले अपना नम्बर का फरियाद करते देखा जाता है, यहाँ के जनप्रतिनिधियों को ध्यान देना होगा और प्रतिदिन एक डॉक्टर को रहने को सोचनी होगी. क्योंकि यह क्षेत्र पिछड़ा है, लोगों की बेरोजगारी सरचड़ कर बोल रही है.हॉस्पिटल में दवा भी पुरी उपलब्ध नहीं है, बाहर के मेडिकलों की चांदी हो रही है.हॉस्पिटल के इन्चार्ज से पूछा गया तो उन्होंने बताया की कुछ दवाइयां हैं, बाकी दवा के लिए अपने सीनियर्स को लिखा हुं, लेकिन ज्यादा तवज्जों नहीं दे रहे हैं. लावालौंग एक बहुत ही गरीब क्षेत्र है,यहाँ के लोग अधिकतर महुआ और थोडी बहुत रब्बी फसल पे आश्रित होते हैं, वे महंगी दवा कहा से खरीदेंगे.इसलिए हॉस्पिटल में पूरी दवा उपलब्ध होनी चाहिए.हॉस्पिटल में सिर्फ दवा के नाम पर खानापूर्ती की जाती है.