नीता शेखर,
रांची: भारत में लॉकडाउन की वजह से हजारों की संख्या में गली मोहल्ले के बच्चे प्रभावित हो रहे हैं भारत में लॉकडाउन होने से लाखों बच्चों की जिंदगी में अराजकता फैल गई है. भारत में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी बाल आबादी है. भारत में लगभग 472 मिलियन बच्चों की आबादी है.
भारत में लॉकडाउन की वजह से लगभग गरीब परिवारों से 40 मिलियन बच्चे प्रभावित हुए हैं. इनमें गांव में, खेतों में काम करने वाले लोगों के बच्चे तो है ही साथ ही वह बच्चे भी शामिल है जो शहरों में रॉ पिकर्स का काम करते हैं या वह बच्चे ट्रैफिक लाइट पर गुब्बारे पर खिलौने आदि बेचते हैं.
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बाल मजदूरों और स्ट्रीट चिल्ड्रन के साथ काम करने वाली दिल्ली की चेतना संस्था का कहना है कि सबसे ज्यादा प्रभावित लाखों बेघर बच्चे हैं जो शहरों में सड़कों पर फ्लाईओवर के नीचे या संकरी गलियों में रहते हैं. लॉकडाउन के दौरान सभी को घर पर रहने के लिए कहा गया लेकिन “सड़क के बच्चों का क्या है ?कहां जाए कोई नहीं पूछता है” यह बच्चे आमतौर पर बहुत स्वतंत्र है.
आज की स्थिति में वह अपने वास्तविक अपने अस्तित्व के साधनों को तलाशने में लगे हैं. यह पहली बार है जब उन्हें सहायता की आवश्यकता है. कई बच्चे को तो लॉकडाउन ने भूखे पेट सोने पर मजबूर कर दिया है. ऐसे सरकार ने काफी कुछ सुविधाएं उपलब्ध कराई है पर बच्चों की आबादी देखकर हर एक बच्चे को सुविधा मुहैया कराना मुश्किल है सबसे ज्यादा तो श्रमिकों के बच्चों को दिक्कत हो रही है. लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए ऐसा कदम उठाया गया है लेकिन यही पहल गरीब बच्चों पर मुसीबत का सबब बन रही है.
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दरअसल कई इलाकों में मिड डे मील ना मिल पाने की वजह से मजदूरों के बच्चे भूखे पेट सोने के लिए मजबूर है. एजेंसी के अनुसार चाय बागान में काम करने वाले मजदूरों के बच्चों को 2 जून की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है. इन बच्चों के साथ काम करने वाली संस्था का कहना है कि भारत जैसे महानगरीय शहरों में स्ट्रीट बच्चों के लिए वह बहुत कुछ कर रहे हैं ,परंतु इन महान प्रयासों के बावजूद यह समस्या काफी गंभीर है और सरकार के लिए यह काफी बड़ी चुनौती है. लेकिन एक बड़ी चुनौती यह भी है कि जो बच्चे अधिक दृश्य वान जगह में नहीं रहते हैं. वह आसानी से नहीं मिल पाते. उन बच्चों तक पहुंचना वास्तव में काफी मुश्किल है. यू तो हमारे देश में बाल मजदूरों की स्थिति काफी खराब है, उस पर ये लॉकडाउन की स्थिति. अब बच्चे करे भी तो क्या करें?