राहुल मेहता.
रांची: बड़ी कंपनी में अधिकारी रमेश और विनोद इस अकस्मात लॉक-डाउन से सदमे में ही चले गए. वे समझ नहीं पा रहे कि वे इक्कीस दिन तक अकेले रहेंगे कैसे. जिंदा रहेंगे भी या नहीं? भोजन सहित दिनचर्या के आवश्यक कामों के लिए महिलाओं पर निर्भर रहने वाले इस परिवार की महिलाएं एक कार्यक्रम में दूसरे शहर गई थी जिनका इक्कीस दिनों तक वापस आना अब संभव नहीं था. क्या यहां समस्या लॉक-डाउन है या रमेश और विनोद के आवश्यक जीवन कौशल का अभाव?
कार्यों का समाजीकरण
वैश्विक महामारी कोरोना ने विश्व के सभी देशों में दिनचर्या बदल कर रख दी है. भारत भी इस प्रभाव से अछूता नहीं परंतु सभी का ध्यान इस महामारी से बचाव और लॉक-डाउन से होने वाले प्रत्यक्ष प्रभाव पर है. संस्थान घर से कार्य करने को प्राथमिकता दे रहे हैं, यह चर्चा का विषय भी बना हुआ है. लेकिन इन सभी जद्दोजहद के बीच अभी तक जो चर्चा से परे है, वह है भारतीय नारी. भारत में सामाजिक मानदंडों के कारण घर के कार्य और परवरिश को महिला का कार्य माना जाता है. पुरुषों का घर का कार्य करना हेय दृष्टि से देखा जाता है. कुछ प्रगतिशील पुरुष गर्व से कहते हैं कि वे महिलाओं के काम में हाथ बंटाते हैं, परंतु यह समझ से परे है कि ऐसा कौन सा कार्य है जो महिलाओं का है घर का नहीं?
महिलाओं पर अतिरिक्त बोझ
काम की जिम्मेदारियां अलग अलग हो सकती हैं, लेकिन पल्ला झाड़ लेना या घरेलु कार्यों को महिलाओं के कार्य का लेबल लगा देना उचित नहीं. बदले परिस्थितियों में घर में महिलाओं पर अतिरिक्त बोझ आन पड़ा है. घरेलू कार्य, बच्चों की जवाबदेही और घर में रहने के कारण बच्चों और पुरुषों की विभिन्न फरमाइशों के बीच कामवाली बाई की अनुपस्थिति समस्या को और गंभीर बना रहें हैं. घर से दूर बाहर रह कर पढ़ाई करने वाले बच्चे भी लम्बे समय बाद घर में हैं. लेकिन मां की ममता और ख्वाइशों के बीच सब्जियों की किल्लत रसोई के विकल्पों को सीमित करने के लिए पर्याप्त हैं.
घरेलु माहौल को खुशनुमा बनाये रखने की चुनौती
कभी-कभी अत्यधिक कार्य बोझ और अनेक आदेश व्यक्ति को चिड़चिड़ा बना देता है. दैनिक गतिविधियों के एकरूपता के कारण इसकी संभावना और बढ़ जाती है. ये घरेलू माहौल को प्रभावित कर सकते हैं. खाना बनाना, कपड़े साफ करना या घर का अन्य कार्य महिलाओं का नहीं घर का काम और जीवन कौशल है. अतः
- लॉक डाउन का प्रयोग अवसर स्वरुप करें. बच्चों को इन जीवन कौशल से अवगत कराएं ताकि आने वाले समय में वे ऐसी परिस्थितियों का सामना कर सकें.
- पतियों के लिए भी यह उचित है कि वह कि वे अपनी घर की जिम्मेदारी भी समझे और घर के कामों में अपना योगदान दें.
- पिता जब बाहर होते हैं तब बच्चों के अपेक्षाएं भिन्न होती हैं. लेकिन घर पर रहते हुए भी पिता बच्चों पर ध्यान ना दें तो बच्चे उपेक्षित महसूस करते हैं. अतः कार्यालय की जिम्मेदारी रूटीन पूर्वक घर से पूर्ण करें लेकिन दिन में भी बच्चों के लिए भी कुछ समय अवश्य निर्धारित अवश्य करें.
- महिलाएं घर का कार्य निबटा कर आराम करती हैं. ऐसा न हो कि बाकि लोग पहले आराम कर लें और उनके आराम के वक्त फरमाइश करने लगें. अपने दिनचर्या के समय को महिलाओं के सुविधानुसार ढालें.
- रमेश और विनोद से सबक लेते हुए खाना बनाना और घर का अन्य कार्य सीखें.
- कोरोना से सुरक्षा के साथ-साथ पारिवारिक एकजुटता, माधुर्यता, भविष्य की योजनाओं पर भी ध्यान दें.
- निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं और बच्चों को भी शामिल करने का प्रयास करें.