रांची: दूसरी बार बार ऐसा हो रहा है कि रांची में रामनवमी जुलूस शोभायात्रा नहीं निकाली जाएगी. शहर के अखाड़ा समितियों में न तो डंके की आवाज सुनाई दे रही है न तो कोई चलह-पहल.
सभी अखाड़ा समितियों ने कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सभी तरह के आयोजनों को स्थगित कर दिया है. राजधानी रांची में रामनवमी के इतिहास काफी पुराना है.
इसकी शुरुआत महावीर चौक से हुई थी. महज पांच लोगों ने मिलकर वर्ष 1929 में डॉ रामकृष्ण लाल और उनके भाई कृष्ण लाल ने अपने 3 दोस्त जगन्नाथ साहू, गुलाब नारायण तिवारी और लक्ष्मण राम मोची ने मिलकर पहली बार रामनवमी की शोभायात्रा निकाली. शोभायात्रा में आसपास के 40-50 लोग शामिल हुए. शोभायात्रा डोरंडा के तपोवन मन्दिर तक गई.
1936 में महावीर मंडल का गठन :
वर्ष 1936 में महावीर मंडल का गठन किया गया. नाम रखा गया श्री महावीर मंडल केंद्रीय कमेटी. इसके प्रथम अध्यक्ष महंत ज्ञान प्रकाश उर्फ नागा बाबा तथा महामंत्री डॉ रामकृष्ण लाल बनाए गए.
इसके बाद महावीर मंडल के नेतृत्व में रामनवमी का जुलूस निकाला गया. जुलूस पहली बार डोरंडा के तपोवन स्थित राम मंदिर तक गया. तब से जुलूस तपोवन मंदिर तक जाने लगा.
रांची में श्री महावीर मंडल केंद्रीय कमेटी के नेतृत्व में ही रामनवमी महोत्सव का आयोजन होता है. पांच लोगों एवं कुछ महावीरी पताका के साथ कमेटी के नेतृत्व में वर्ष 1936 में आरंभ हुआ रामनवमी महोत्सव अब भव्य रूप ले चुका है.
रामनवमी की शोभायात्रा, 1964 को छोड़कर, नियमित रूप से निकाली जा रही है. 1970 के बाद अखाड़ों की संख्या में वृद्धि होने लगी. मोहल्लों में अखाड़ों का गठन किया जाने लगा.