4 सितम्बर को पर्यूषण पर्व के अंतर्गत दिगंबर जैन समाज आत्म कल्याण हेतु 10 धर्मों में से दूसरे मार्दव धर्म को पर्व के रूप में मनाएगा। मार्दव शब्द का अर्थ है आत्मा के परिणामों में मृदुता एवं सरलता। यह मृदुता और सरलता अभिमान को त्यागने से मिलती है. इस धर्म का चिंतन करते हुए हम यह भावना लाते हैं कि धन संपत्ति, ताकत, पद, जाति, रूप, ज्ञान, पहचान इत्यादि पर घमंड नहीं करना है. हमें यह सब पुण्य कर्म से प्राप्त हुए हैं और स्थाई नहीं है. इसलिए हमें इन पर गर्व नहीं करना है और स्वभाव विनम्रता को बनाए रखना है. रावण के अहंकार के कारण ही लंका का नाश हुआ था. दूसरों को तुच्छ समझने के कारण एवं स्वयं को महान समझने के कारण अहंकार शत्रुता को जन्म देता है.
डॉक्टर ब्रह्मचारी आकाश ने बताया कि सरल स्वभाव के बिना बैर विरोध वाले सज्जन ही आसानी से आत्म कल्याण के मार्ग में चल सकते हैं. विनय रहित व्यक्ति को कदम कदम पर प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है, जबकि पूरी कायनात विनय सहित व्यक्ति के मार्ग को प्रशस्त करती है.
आज जैन धर्मावलंबियों ने इसी मार्दव धर्म का चिंतन करते हुए जिनेंद्र भगवान का अभिषेक किया और मानव मात्र के कल्याण हेतु एवं विश्व शांति हेतु विधिवत पूजा और अर्चना को संपन्न किया।
यह जानकारी दिगंबर जैन पंचायत के मीडिया प्रभारी प्रदीप जैन ने दी।