धनबाद: 2 फरवरी 2001… झारखंड के इतिहास की मनहूस तारीख… जगह- धनबाद का बागडिगी कोयला खदान…. वो जगह जहां के लिए घर से निकले 29 मजदूर मौत के आगोश में समा गए थे. उन्होंने ये सोचा नहीं था कि वो दर्दनाक जलसमाधि लेने जा रहे हैं. हादसे के बाद पूरे 7 दिन तक रेस्क्यू ऑपरेशन चला था. हादसा कितना भयानक था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शवों को निकालने का काम तीन दिन बार शुरू हो पाया.
बागडिगी खदान के समीप में रहने वाले यूनियन नेता नंदलाल पासवानऔर अन्य बीसीसीएल कर्मी उस भयानक मंजर को याद करते हुए कहते हैं कि वो शायद ही कभी उस दिन को भूल पाएं. 2 फरवरी 2001 को शुक्रवार के दिन पहली शिफ्ट में 12 नम्बर पिट के सिम नम्बर सात में लगभग 80 से 90 श्रमिक कार्य करने गए थे.
दिन के लगभग 11 बजे के आसपास अचानक 12 नम्बर पिट से हवा का तेज झोंका अचानक से ऊपर उठा. हवा इतनी तेज थी कि चानक के ऊपर बैठे हुक मैन और मजदूरों में अफरा तफरी मच गई. हुक मैन ने मामले की जानकारी अपने वरीय अधिकारियों को दी. जानकारी मिलते ही अधिकारी चानक के नजदीक पहुंचे और हालात को समझने में जुट गए. थोड़ी ही देर में अधिकारियों को पता चल गया था कि चानक के अंदर डैम फट गया है और खदान पूरी तरह डूब चुकी है.
खदान के अंदर डैम फटने की जानकारी जंगल में आग की तरह पूरे क्षेत्र में फैल गई ओर आसपास के लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. जो श्रमिक खदान के अंदर काम करने गए थे.उनके परिजन भी चानक के नजदीक पहुंच कर जल्द रेस्क्यू की मांग करने लगे. उसी दौरान बीसीसीएल के वरीय अधिकारी त्वरित कार्यवाई करते हुए खदान में फंसे श्रमिकों को निकालने के लिए रेस्क्यू का काम शुरू किया. दिन बीतते गए और रेस्क्यू चलता रहा.
खदान में पानी इतना ज्यादा था कि श्रमिको के पास रेस्क्यू की टीम का पहुंच पाना काफी मुश्किल हो रहा था. इधर खदान में फंसे श्रमिकों के परिजनों का धैर्य भी जवाब दे रहा था.इसके बाद श्रमिकों के परिजन और आसपास के लोग चानक पर हंगामा करने लगे थे .घटना की जानकारी मिलते ही प्रशासन के साथ नेता भी मौके पर पहुंच गए थे.
हादसे के तीन दिन बीत जाने के बाद जब खदान में फंसे श्रमिकों के बचने की संभावना खत्म हो गई तो परिजनों ने बीसीसीएल के वरीय अधिकारियों और जिला प्रशासन से शव निकालने की अपील की. इसके बाद बीसीसीएल के अधिकारियों ने खदान में फंसे श्रमिकों के रेस्क्यू के लिए मुंबई से गोताखोरों की टीम मंगाई. पांच फरवरी की रात बारह बजे गोताखोर की टीम ने जयरामपुर 5 नम्बर चानक से शवों को निकालना शुरू किया. शव की पहचान कैप-लैंप के नंबर से की गई थी. इस घटना में कुल 29 श्रमिकों की दर्दनाक की जल समाधी हुई थी. हालांकि एक शख्स का किस्मत ने साथ दिया. हादसे के सात दिन बाद रेस्क्यू टीम ने मोहम्मद सलीम नामक फीटर को खदान से जिंदा निकाल लिया.
इस दर्दनाक हादसे को आज 20 साल हो चुके हैं लेकिन घरवालों को अबतक मुआवजा नहीं मिला. वजह क्या है ये किसी की जानकारी में नहीं है. हादसे के बाद हर साल 2 फरवरी को बीसीसीएल प्रबंधन, श्रमिकों के परिजनों और यूनियन के नेता मारे गाए कामागारों को श्रद्धांजलि देते हैं.