ब्यूरोचीफ
रांची: कल बिहार विधानसभा का चुनाव परिणाम आने वाला है. सभी विधानसभा सीटों के नतीजे घोषित होने के बाद ही सरकार बनाने की स्थिति स्पष्ट हो पाएगी. हालांकि अंतिम चरण के मतदान के बाद आये एक्जिट पोल यूपीए के पक्ष में आंकड़े बता रहे हैं. एक्जिट पोल सही साबित होने पर एनडीए के हाथ से एक और राज्य निकल जाएगा. ऐसा होने पर पार्टी के वरिष्ठ नेता बैठकर मंथन करेंगे.
इससे पहले भी एक-एक कर कई राज्य भाजपा के हाथों से निकल चुके हैं. कुछ में स्थानीय नेताओं का अहम तो कुछ तो कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान नहीं मिलने का दंश पार्टी को झेलना पड़ा. कई जगहों पर तो नेताओं का अति आत्मविश्वास, बड़बोलापन और बिना सोचे बोलना भी हार का कारण बना.
भाजपा के हाथ से हाल में झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, दिल्ली जैसे राज्य निकल चुके हैं. कुछ में तो पार्टी सीधे शासन कर रही तो कुछ में सहयोगी दलों के साथ काबिज थी. मध्य प्रदेश में हाल में शिवराज सिंह चौहान ने दोबारा कमान संभाली है
पिछले दिनों भाजपा के हाथ से सरके राज्यों में हुए चुनाव के दौरान उठे मुद्दों पर गौर करें. अधिकतर जगहों पर भाजपा ने वही मुद्दे उठाये, जो लोकसभा चुनाव में उठाते रहे हैं. पाकिस्तान, चीन, तीन तलाक, राम मंदिर, सीमा विवाद, धारा 370 हटाना आदि. इसके जवाब में चुनाव जीतने वाली पार्टियां स्थानीय मामलों को तव्वजो देती रही.
सरकारी संस्थानों का निजीकरण और रोजगार के अवसर को खत्म करते जाना भी भाजपा पर भारी पड़ रहा है. देशहित सर्वोपरि है, इसमें दो राय नहीं. हालांकि यह भी सच है कि भूखे पेट भजन नहीं होता है. केंद्र सरकार के कदम से लगातार रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं. निजीकरण के कारण वेतन और सुविधाओं में व्यापक स्तर पर कटौती हो रही है.
सरकार लाख दावा कर लें, पर श्रम कानूनों का पालन अधिकतर निजी कंपनियों में नहीं हो रहा है. कर्मियों का शोषण व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है. इस तरह के मामले लगातार प्रकाश में भी आते रहते हैं. इसके खिलाफ की गई शिकायतों पर भी त्वरित कार्रवाई नहीं होती है. इससे सीधे तौर पर युवा वर्ग प्रभावित हो रहा है. इसका असर कहीं न कहीं चुनाव परिणाम पर दिख रहा है.
प्राइवेट कंपनियों की मनमान की व्यापक बानगी कोरोना काल में देखने को मिली. प्राइवेट कंपनियों ने मालिकों के लिए खून-पसीना बहाने वाले मजदूरों को सड़क पर ला खड़ा किया. मासिक वेतन में कटौती की गई. प्रधानमंत्री की अपील धरी की धरी रह गई. कुछ कंपनियों ने जरूर मिसाल पेश की.
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद युवाओं में नई उम्मीद जगी थी. शायद यही कारण है कि वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले भारतीय जनता पार्टी सात राज्यों में सत्ता संभाल रही थी. मार्च 2018 आते-आते भाजपा तेज़ी से बढ़ते हुए 21 राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही. यानी चार साल में तिगुना विस्तार. ये पहली बार था, जब पंजाब को छोड़कर पूरे उत्तर भारत में बीजेपी अकेले या अपने सहयोगी दलों के साथ सरकार में थी
भाजपा का विजयरथ 2018 से रुकना शुरू हुआ, जब कर्नाटक में कांग्रेस गठबंधन ने सरकार बना ली. हालांकि ये सरकार ज़्यादा दिन नहीं चली और कुछ वक़्त बाद बीजेपी ने फिर से राज्य में सरकार बना ली. इसके बाद भाजपा के सत्ता से फिसलने का सिलसिला शुरू हुआ. धीरे-धीरे उसके साथ से एक-एक कर कई राज्य निकल गये.