नई दिल्ली.अगर झारखंड की प्राकृतिक संपदाओं को ईमानदारी और दूरदर्शिता से उपयोग किया जाता, तो आज यह राज्य भारत का “दुबई” बन सकता था। जिस तरह गल्फ कंट्रीज़ ने अपने तेल भंडार का उपयोग कर दुनिया के सामने समृद्धि की मिसाल पेश की, वैसी ही संभावना झारखंड के पास भी थी – विशेषकर धनबाद जैसे क्षेत्र में स्थित विशाल कोयला भंडार के कारण। लेकिन अफ़सोस, यह सपना भ्रष्टाचार, अव्यवस्था और चोरी की भेंट चढ़ गया।
कोयले की राजधानी, लेकिन बदहाल हालात
धनबाद को देश की “कोयला राजधानी” कहा जाता है। यहाँ पर भारत के सबसे बड़े कोयला भंडार हैं – झरिया, बोकारो, गिरिडीह, चंद्रपुरा जैसे इलाके खनिज संपदा से भरपूर हैं। मगर जितना कोयला यहां से निकाला जाता है, उसका वास्तविक लाभ न तो स्थानीय जनता को मिलता है और न ही राज्य को।
कच्चा कोयला निकलता है झारखंड से, रिफाइनिंग होती है कहीं और
झारखंड से प्रतिदिन लाखों टन कच्चा कोयला निकलता है, लेकिन उसकी प्रोसेसिंग (रिफाइनिंग) और ऊर्जा उत्पादन की प्रमुख इकाइयाँ राज्य से बाहर हैं। इसके कारण रोजगार के अवसर भी दूसरे राज्यों में पैदा होते हैं और झारखंड को सिर्फ प्रदूषण, विस्थापन और खनन माफियाओं की मार मिलती है।
विकास को निगल गया भ्रष्टाचार
कोयला कंपनियों और स्थानीय प्रशासन के बीच गठजोड़ ने लूट-खसोट की ऐसी व्यवस्था बना दी है जिसमें झारखंड की असली कमाई बाहर चली जाती है। फर्जी खनन, ओवरलोडिंग, अवैध परिवहन और टेंडर घोटालों ने राज्य की तरक्की को पंगु बना दिया है। आम जनता को न बिजली सस्ती मिलती है, न रोजगार, और न ही बुनियादी सुविधाएं।
कुछ शहरो तक सिमट कर रह गया आधा अधूरा विकास
झारखंड प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर राज्य है — कोयला, लोहा, मैगनीज़, बॉक्साइट, और यूरेनियम जैसे खनिज यहां पाये जाते हैं। टाटा स्टील और टाटा मोटर्स जैसे औद्योगिक संस्थानों की मौजूदगी के बावजूद भी यहां का समग्र विकास बेहद असंतुलित है।
1. विकास कुछ शहरों तक ही सीमित
राज्य गठन को 20 साल से ज़्यादा हो गए, लेकिन आज भी झारखंड का विकास केवल रांची, जमशेदपुर, बोकारो और धनबाद जैसे कुछ शहरों तक सीमित है। इनमें भी बुनियादी ढाँचे की हालत पूरी तरह संतोषजनक नहीं है।
2. जमशेदपुर — देश का औद्योगिक गहना, लेकिन हवाई अड्डे से वंचित
जमशेदपुर देश का सबसे पुराना और बड़ा प्राइवेट इंडस्ट्रियल टाउन है। टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, और सैकड़ों छोटे-बड़े कारखानों की मौजूदगी के बावजूद यहां आज तक एक फुल-फ्लेज्ड हवाई अड्डा नहीं है।
सोनारी हवाई पट्टी सिर्फ चार्टर्ड उड़ानों तक सीमित है।
एयर कनेक्टिविटी के लिए लोगों को रांची, कोलकाता या भुवनेश्वर जाना पड़ता है।
इतने बड़े इंडस्ट्रियल बेस के बावजूद जमशेदपुर की एयरलाइंस कनेक्टिविटी की यह हालत शर्मनाक है।देश का सबसे बड़ा निजी और नंबर 1 बिजनेस संस्थान XLRI JAMSHEDPUR भी जमशेदपुर में है.
3. झारखंड के अन्य जिले विकास से क्यों वंचित हैं?
गुमला, लातेहार, पलामू, चतरा जैसे ज़िले आज भी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोज़गार का संकट बना हुआ है।
संसाधनों की लूट हो रही है लेकिन जनता को उसका लाभ नहीं मिल रहा।
4. कारण क्या हैं इस असंतुलन के?
राजनीतिक अस्थिरता: बार-बार सरकारें बदलना, नीति निर्धारण में निरंतरता की कमी।
भ्रष्टाचार और घोटाले: फंड का दुरुपयोग, टेंडर माफिया और अफसरशाही की लापरवाही।
उद्योग नीति की विफलता: छोटे शहरों में इंडस्ट्री नहीं लग पा रही, न ही निवेश को बढ़ावा मिल रहा।
5. समाधान क्या हो सकता है?
जमशेदपुर जैसे शहर में फुल-स्केल एयरपोर्ट विकसित करना, मेट्रो कि सुविधा.
छोटे शहरों में इंडस्ट्रियल क्लस्टर, स्किल ट्रेनिंग सेंटर, और स्टार्टअप हब स्थापित करना।
खनिज संपदा वाले ज़िलों में माइनिंग-रेवेन्यू फंड से स्थानीय विकास करना।
पारदर्शी गवर्नेंस और जन भागीदारी बढ़ाना।
क्या सचमुच दुबई बन सकता था झारखंड?
बिलकुल! अगर झारखंड में ही रिफाइनरी, पावर प्लांट्स, स्टील फैक्ट्रियाँ और कोयला गैसीकरण जैसी परियोजनाएँ समय पर और पारदर्शी तरीके से लगाई जातीं, तो झारखंड न केवल आत्मनिर्भर होता, बल्कि अन्य राज्यों को भी ऊर्जा और संसाधन मुहैया कराता।
अब भी नहीं है देर…
अब भी समय है कि राज्य सरकार और केंद्र मिलकर झारखंड की खनिज संपदा को सही दिशा में उपयोग करें। “मेक इन झारखंड” जैसे मिशनों के तहत स्थानीय स्तर पर प्रोसेसिंग यूनिट्स और उद्योग लगाए जाएँ, ताकि यहाँ के लोगों को स्थायी रोजगार मिल सके।
निष्कर्ष:
झारखंड की कहानी एक अमीर लेकिन लुटे हुए राज्य की है। कुदरत ने झारखंड को बेशकीमती खजाना दिया, लेकिन भ्रष्ट व्यवस्था ने उसे बर्बाद कर दिया। अगर इच्छा शक्ति हो, तो झारखंड दुबई नहीं, उससे भी बड़ी मिसाल बन सकता है।