नई दिल्ली : इस समय पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में है. ऐसे में 7 अप्रैल को मनाया जाने वाला विश्व स्वास्थ्य दिवस का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. इस बार का विश्व स्वास्थय दिवस उन तमाम डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थय कर्मचारियों को समर्पित है जो अपनी जान की परवाह किए बिना कोरोना की जंग लड़ रहे है.
हर साल सात अप्रैल की तारीख को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिवस की शुरुआत साल 1950 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की गई थी.
चलिए इस दिन के अवसर पर विस्तार से जानते है इसके पीछे का इतिहास, उद्देश्य और महत्व के बारे:
हर साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्थापना दिवस की वर्षगांठ पर विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है. इस संस्था का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में है. डब्ल्यूएचओ की स्थापना के समय इसके संविधान पर विश्व के 61 देशों ने हस्ताक्षर किए थे और इसकी पहली बैठक 24 जुलाई 1948 को हुई थी.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी स्थापना काल से अब तक स्मॉल चिकेन पॉक्स जैसी बीमारी को खत्म करने में बड़ी जिम्मेदारी निभाई है. भारत सरकार ने भी पोलियो जैसी महामारी को खत्म किया गया है.
फिलहाल डब्ल्यूएचओ टीबी, एचआईवी, एड्स और इबोला जैसी जानलेवा बीमारियों की रोकथाम के लिए काम कर रहा है और वर्तमान समय में कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण करने के लिए कई देशों की सरकारों के साथ मिलकर विश्व स्वास्थ्य संगठन काम कर रहा है.
भारत में स्वास्थ्य आंकड़े
भारत ने पिछले कुछ सालों में तेजी के साथ आर्थिक विकास किया है लेकिन इस विकास के बावजूद बड़ी संख्या में लोग कुपोषण के शिकार हैं जो भारत के स्वास्थ्य परिदृश्य के प्रति चिंता उत्पन्न करता है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार तीन वर्ष की अवस्था वाले 3.88 प्रतिशत बच्चों का विकास अपनी उम्र के हिसाब से नहीं हो सका है और 46 प्रतिशत बच्चे अपनी अवस्था की तुलना में कम वजन के हैं जबकि 79.2 प्रतिशत बच्चे एनीमिया (रक्ताल्पता) से पीड़ित हैं. गर्भवती महिलाओं में एनीमिया 50 से 58 प्रतिशत बढ़ा है.
- कहा जाता है बेहतर स्वास्थ्य से आयु बढ़ती है. इस स्तर पर देखें तो बांग्लादेश भारत से आगे है. भारत में औसत आयु जहां 64.6 वर्ष मानी गई है वहीं बांग्लादेश में यह 66.9 वर्ष है. इसके अलावा भारत में कम वजन वाले बच्चों का अनुपात 43.5 प्रतिशत है और प्रजनन क्षमता की दर 2.7 प्रतिशत है. जबकि पांच वर्षों से कम अवस्था वाले बच्चों की मृत्यु दर 66 है और शिशु मृत्यु दर जन्म लेने वाले प्रति हजार बच्चों में 41 है. जबकि 66 प्रतिशत बच्चों को डी.पी.टी. का टीका देना पड़ता है.
- इंडिया हेल्थ रिपोर्ट 2010 के मुताबिक सार्वजनिक स्वास्थ्य की सेवाएं अभी भी पूरी तरह से मुफ्त नहीं हैं और जो हैं उनकी हालत अच्छी नहीं है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की काफी कमी है. भारत में डॉक्टर और आबादी का अनुपात भी संतोषजनक नहीं है. 1000 लोगों पर एक डॉक्टर भी नहीं है. अस्पतालों में बिस्तर की उपलब्धता भी काफी कम है. केवल 28 प्रतिशत लोग ही बेहतर साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं.
- पिछले कुछ सालों में यहां एच.आई.वी. एड्स तथा कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का प्रभाव बढ़ा है. साथ ही डायबिटीज, हृदय रोग, क्षय रोग, मोटापा, तनाव की चपेट में भी लोग बड़ी संख्या में आ रहे हैं. महिलाओं में स्तन कैंसर, गर्भाशय कैंसर का खतरा बढ़ा है. ये बीमारियां बड़ी तादाद में उनकी मौत का कारण बन रही हैं.
- ग्रामीण तबके में देश की अधिकतर आबादी उचित खानपान के अभाव में कुपोषण की शिकार है. महिलाओं, बच्चों में कुपोषण का स्तर अधिक देखा गया है. एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रति 10 में से सात बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं. वहीं, महिलाओं की 36 प्रतिशत आबादी कुपोषण की शिकार है.