यह सरकारी सिस्टम है. यहां सरकारी बाबू ही जन्मदाता है, और सरकारी बाबू ही यमराज, यहां कब किसकी मौत होगी, यह तय भी सरकारी बाबू ही करते है. चाहे फिर वह इंसान जिन्दा ही क्यों ना हो. सरकारी बाबू जब चाहे उसे मार सकते हैं. फिर जिन्दा इंसान को भी खुद को जिन्दा साबित करने के लिए सबूत देना पड़ता है. सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ते हैं, क्योंकि यह सरकारी तंत्र है. बोकारो जिले के कसमार प्रखंड में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसे सुनकर आप भी हैरान हो जायेंगे. यहां के सरकारी बाबू की एक करतूत की वजह से कई लोगों को खुद को जिन्दा साबित करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा हैं.
क्या है पूरा मामला आइये जानते है हमारे इस खास रिपोर्ट में-
बोकारो जिला मुख्यालय से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह है कसमार प्रखंड का टांगटोना पंचायत यहां के कई लोग जिन्दा तो है पर सरकारी दस्तावेजों में वह मर चुके है. सरकारी बाबू की लापरवाही ने इस गांव के कई लोगों को मृत्य घोषित कर दिया है. अब जिन्दा रहते हुए भी मृत घोषित व्यक्ति खुद को जिन्दा बताने के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं. उन्हें खुद को जिन्दा बताने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, लेकिन यमराज बने सरकारी बाबुओं का फैसला तो अटल है. वह कैसे बदल सकता है, जिसे वह खुद मौत की नींद में सूला दिए है उसे जिन्दा कैसे मान लें. अब कागजात लिए मृत्य व्यक्ति कभी इस दफ्तर तो कभी उस दफ्तर के चक्कर काट रहे है.
सरकारी बाबू की इस कार्यशैली से कैसे परेशान हैं लोग जरा इसे भी समझिये-
अब ऐसे जो मर चुका हो उन्हें सरकार की सभी योजनाओं से वंचित रहना पड़ेगा. क्योंकि जो इस दुनियां में है ही नहीं उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ कैसे मिल सकता है. वह अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता है. ऐसे न जाने कितनी परेशनियों से इन्हे गुजरना पड़ रहा है. फ़िलहाल इस गांव में चार ऐसे लोग है जिन्हें मृत घोषित कर उनके वृद्धावस्था पेंशन को बंद कर दिया गया है. सरकार से मिलने वाली अनाज भी अब इन्हें नहीं मिल रहा. इनकी बूढ़ी हड्डियों में अब इतनी जान भी नहीं की हर दिन सरकारी दफ्तर का चक्कर भी लगा सके, यह अपनी बेवसी पर सिसक रहे हैं. अपनी किस्मत पर आंसू बहा रहे हैं पर सरकारी तंत्र को क्या… वह तो खामोश है. वे सभी जिंदा रहते हुए भी चीख-चीख कर कह रहे हैं साहब मैं जिन्दा हूं पर उसकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं.
पीड़ितों की यह परेशानी नई नहीं-
इन पीड़ितों की यह परेशानी नई नहीं है, न जाने कई सालों से यह दर्द ये लोग अपने सीने में दबाये हुए थे. इस मामले का खुलासा तब हुआ, जब इनमें से एक लाभुक दुलारी देवी ने इसकी शिकायत उपप्रमुख ज्योत्सना झा से की और मामला पंचायत समिति की बैठक में उठाई गई. इसपर काफी हंगामा भी हुआ. पंचायत समिति की बैठक में जब इस मामले पर हंगामा हुआ तब जाकर सरकारी बाबूओं की नींद खुली. सीओ प्रदीप कुमार ने मामले को गंभीरता से लिया और इसकी जांच के लिए जिला मुख्यालय को खत लिखा. जिसमें बताया गया की स्थानीय मुखिया गुड़िया देवी व पंचायत सेवक चूड़ामन ने दुलारी देवी समेत इसी पंचायत के तीन अन्य जीवित व्यक्ति को भी मृत घोषित कर दिया है. इसी कारण से इन सभी का पेंशन जुलाई 2017 से ही बंद है.
पंचायत समिति की बैठक-
उपप्रमुख ने पंचायत समिति की बैठक में भी दुलारी देवी के पेंशन बंद हो जाने का मामला उठाया था, लेकिन उस समय इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करायी गयी. मुखिया एवं पंचायत सेवक ने मामले को दबाये रखा, तत्कालीन सीओ के स्तर से भी इसका खुलासा नहीं किया गया. जबकि, मुखिया गुड़िया देवी ने सीओ को पत्र लिखकर इससे अवगत कराते हुए सभी का पेंशन पुन: चालू कराने का आग्रह किया था.
मामले की जब जांच की गई तो पता चला है की मुखिया ने लिखा है वर्ष 2017-18 के भौतिक सत्यापन के क्रम में भूलवश चार पेंशनधारियों को मृत घोषित कर दिया गया था. हालांकि, इन चारों के अलावा भी अन्य कई जीवित लोगों को भी मृत घोषित कर दिये जाने की बात सामने आ रही है.
समाजसेवी तपन झा ने बताया की यह मामला मुखिया एवं पंचायत सेवक की लापरवाही का नतीजा है. इससे यह भी साबित होता है कि भौतिक सत्यापन घर बैठे कर किया गया था. अगर सभी का पेंशन पुन: चालू हो भी जाता है तो इतने वर्षों तक का जो पेंशन नहीं मिला, उसकी भरपाई कौन करेगा. पंचायत सेवक के वेतन से इन चारों गरीब पेंशनधारियों के पेंशन की भरपाई की जानी चाहिए तथा इस प्रकार की लापरवाही के लिए कार्रवाई भी होनी चाहिए.
इस ममले में बोकारो उपायुक्त कृपानंद झा ने बताया की जिन पेंशनधारियों को मृत घोषित कर दिया गया था, उनकी पेंशन पुन: चालू कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है. वे सभी पेंशन के हकदार हैं . उन्हें निश्चित तौर पर पेंशन मिलेगी. यह किसकी गलती से हुई है इसकी भी जांच की जा रही है. जो भी दोषी है उन पर कार्रवाई की जाएगी.
हर गरीब को उनका हक़ मिले-
सरकार हर गरीब तक सरकारी योजना पहुंचाने के लिए कई तरह के प्रयास करती है. हर गांव कस्बों में जागरूकता अभियान चला कर सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाती है. हर गरीब को उनका हक़ मिले इसके लिए हर वर्ष करोड़ों खर्च भी किये जाते हैं पर क्या यह सरकारी योजनाओं का लाभ गरीब लाभुकों को मिल पाता है. बोकारो के कसमार की यह घटना सरकारी दावों की पोल खोल रही है. जिला प्रशासन भले ही इस करतूत के लिए जिम्मेवार व्यक्ति को सजा दें पर आज भी कई गांव कस्बों में सरकारी बाबूओं की करतूत से लोगों को परेशानी उठानी पड़ रही है.