शशि भूषण दूबे कंचनीय,
मिर्जापुर: जनपद के मड़िहान तहसील के राजगढ़, ददरी पहाड़ी बूथ पर भारतीय जनता पार्टी के जिला उपाध्यक्ष जगदीश सिंह पटेल एवं बूथ के समस्त पदाधिकारी द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती धूमधाम से मनाया गया.
विंध्यभूषण सम्मान से सम्मानित जिला उपाध्यक्ष जगदीश सिंह पटेल ने पंडित दीनदयाल के चित्र पर माल्यापर्ण कर उनको नमन किया.
इस अवसर पर लोगों को संबोधित करते हुए पं० दीनदयाल उपाध्याय के जीवन पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को मथुरा जिले के नगला चंद्रभान ग्राम में हुआ था. उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था.
उनकी माता धार्मिक प्रवित्ति की थी. पिता रेलवे में जलेसर स्टेशन के सहायक स्टेशन मास्टर थे. रेलवे की नौकरी होने के कारण उनके पिता का अधिक समय बाहर ही बीतता था. कभी-कभी छुट्टी मिलने पर ही घर आते थे.
दो वर्ष के बाद दीनदयाल के भाई ने जन्म लिया. जिसका नाम शिवदयाल रखा गया. पिता ने बच्चों को ननिहाल भेज दिया. उस समय उपाध्याय जी के नाना जयपुर स्टेशन के स्टेशन मास्टर थे. नाना का परिवार बड़ा था.
दीनदयाल अभी 3 वर्ष के भी नही हुए थे ,कि उनके पिता का देहांत हो गया. पति की मृत्यु से मां रामप्यारी को अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा. वे अत्यधिक बीमार रहने लगी. उन्हें क्षय रोग हो गया.
8 अगस्त 1924 को उनका भी देहांत हो गया. उस समय दीनदयाल 7 वर्ष के थे. 1926 में नाना चुन्नीलाल भी नही रहे. 1931 में पालन करने वाली मामी का निधन हो गया. 18 नवम्बर 1934 को अनुज शिवदयाल ने भी उपाध्याय जी का साथ सदा के लिए छोड़कर दुनिया से विदा ले ली. 1835 में स्नेहमयी नानी भी स्वर्ग सिधार गयी.
19 वर्ष की अवस्था तक उपाध्याय जी ने मृत्यु दर्शन से गहन साक्षात्कार कर लिया था. 8वीं की परीक्षा पास करने के बाद उपाध्याय जी ने कल्याण हाईस्कूल,सीकर,राजस्थान से दसवीं की परीक्षा में बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया.
1937 में पिलानी से इंटरमीडिएट की परीक्षा के पुनः बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया. उन्होंने ने 1939 में कानपुर के सनातन धर्म कालेज से बी०ए० करने के लिए सेंट जॉन्स कालेज आगरा में प्रवेश लिया और पूवर्द्ध में प्रथम श्रेणी में पास हुए. बीमार बहन रामदेवी की शुश्रुषा में लगे रहने के कारण उत्तराद्ध न कर सके.
मामाजी के बहुत आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक परीक्षा दी,पास भी हुए किंतु ब्रिटिश सरकार की नौकरी नही की. बी०ए० और बी०टी० करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नही की. 1937 में जब वह कानपुर से बी०ए० कर रहे थे, अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये. संघ के संस्थापक डा० हेडगेवार का सानिध्य कानपुर में ही मिला.
उपाध्याय जी ने पढाई पूरी होने के बाद संघ का द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण पूर्ण किया और संघ के जीवांवती प्रचारक हो गए. आजीवन संघ के प्रचारक रहे. संघ के माध्यम से ही उपाध्याय जी राजनीति में आये.