रांची: बवासीर या पाइल्स एक ऐसी बीमारी है जिसमें एनस के अंदर और बाहरी हिस्से की शिराओं में सूजन आ जाती है. इसकी वजह से गुदा के अंदरूनी हिस्से में या बाहर के हिस्से में कुछ मस्से जैसे बन जाते हैं, जिनमें से कई बार खून निकलता है और दर्द भी होता है. कभी-कभी जोर लगाने पर ये मस्से बाहर की ओर आ जाते है. अगर परिवार में किसी को ऐसी समस्या रही है तो आगे की जेनरेशन में इसके पाए जाने की आशंका बनी रहती है. देखने में भले ही आसान लगे, लेकिन पाइल्स होने पर बड़ा मुश्किल लगता है बैठने का काम. वैसे अगर कब्ज को दूर कर दिया जाए तो पाइल्स की समस्या होगी ही नहीं.
पाइल्स की चार स्टेजग्रेड 1 : यह शुरुआती स्टेज होती है. इसमें कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते. कई बार मरीज को पता भी नहीं चलता कि उसे पाइल्स हैं. मरीज को कोई खास दर्द महसूस नहीं होत. बस हल्की सी खारिश महसूस होती है और जोर लगाने पर कई बार हल्का खून आ जाता है. इसमें पाइल्स अंदर ही होते हैं.
ग्रेड 2: दूसरी स्टेज में मल त्याग के वक्त मस्से बाहर की ओर आने लगते हैं, लेकिन हाथ से भीतर करने पर वे अंदर चले जाते हैं. पहली स्टेज की तुलना में इसमें थोड़ा ज्यादा दर्द महसूस होता है और जोर लगाने पर खून भी आने लगता है.
ग्रेड 3 : यह स्थिति थोड़ी गंभीर हो जाती है क्योंकि इसमें मस्से बाहर की ओर ही रहते हैं. हाथ से भी इन्हें अंदर नहीं किया जा सकता है. इस स्थिति में मरीज को तेज दर्द महसूस होता है और मल त्याग के साथ खून भी ज्यादा आता है.
ग्रेड 4 : ग्रेड 3 की बिगड़ी हुई स्थिति होती है. इसमें मस्से बाहर की ओर लटके रहते हैं. जबर्दस्त दर्द और खून आने की शिकायत मरीज को होती है. इंफेक्शन के चांस बने रहते हैं.
लक्षण – मल त्याग करते वक्त तेज चमकदार रक्त का आना या म्यूकस का आना – एनस के आसपास सूजन या गांठ सी महसूस होना – एनस के आसपास खुजली का होना – मल त्याग करने के बाद भी ऐसा लगते रहना जैसे पेट साफ न हुआ हो – पाइल्स के मस्सों में सिर्फ खून आता है, दर्द नहीं होता. अगर दर्द है तो इसकी वजह है इंफेक्शन.
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कारण क्या हैं – कब्ज पाइल्स की सबसे बड़ी वजह होती है. कब्ज होने की वजह से कई बार मल त्याग करते समय जोर लगाना पड़ता है और इसकी वजह से पाइल्स की शिकायत हो जाती है – ऐसे लोग जिनका काम बहुत ज्यादा देर तक खड़े रहने का होता है, उन्हें पाइल्स की समस्या हो सकती है – गुदा मैथुन करने से भी पाइल्स की समस्या हो सकती है – मोटापा इसकी एक और अहम वजह है – कई बार प्रेग्नेंसी के दौरान भी पाइल्स की समस्या हो सकती है – नॉर्मल डिलिवरी के बाद भी पाइल्स की समस्या हो सकती है.
इलाज के तरीके
1. ऐलोपैथी
दवाओं सेः अगर पाइल्स स्टेज 1 या 2 के हैं तो उन्हें दवाओं से ही ठीक किया जा सकता है. सर्जरी की जरूरत नहीं होती. एनोवेट और फकटू पाइल्स पर लगाने की दवाएं हैं. इनमें से कोई एक दवा दिन में तीन बार पाइल्स पर लगाई जा सकती है. इन दवाओं को डॉक्टर से पूछकर ही लगाना चाहिए.
ऑपरेशनरबर बैंड लीगेशन(Rubber Band Ligation) अगर मस्से थोड़े बड़े हैं तो रबर बैंड लीगेशन का प्रयोग किया जाता है. इसमें मस्सों की जड़ पर एक या दो रबर बैंड को बांध दिया जाता है, जिससे उनमें ब्लड का प्रवाह रुक जाता है. इसमें डॉक्टर एनस के भीतर एक डिवाइस डालते हैं और उसकी मदद से रबर बैंड को मस्सों की जड़ में बांध दिया जाता है. इसके बाद एक हफ्ते के समय में ये पाइल्स के मस्से सूखकर खत्म हो जाते हैं. एनैस्थिसिया देने की जरूरत नहीं होती. एक बार में दो-तीन मस्सों को ही ठीक किया जाता है. इसके बाद मरीज को दोबारा बुलाया जाता है. इसमें भी अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती. इस प्रॉसेस को करने के 24 से 48 घंटे के भीतर मरीज को दर्द महसूस हो सकता है, जिसके लिए डॉक्टर दवाएं दे देते हैं.
स्कलरोथेरपी (Sclerotherapy) इस तरीके का इस्तेमाल तभी किया जाता है जब मस्से छोटे होते हैं. स्टेज 1 या 2 तक इस तरीके का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें मरीज को एक इंजेक्शन दिया जाता है. इससे मस्से सिकुड़ जाते हैं और उसके बाद धीरे-धीरे शरीर के द्वारा ही अब्जॉर्ब कर लिए जाते हैं. अगर मस्से बाहर आकर लटक गए हैं तो इस तरीके का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसमें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती . डे केयर प्रॉसेस है यानी अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती.
हेमरॉयरडक्टमी (Haemorrhoidectomy) मस्से अगर बहुत बड़े हैं और दूसरे तरीके फेल हो चुके हैं तो यह प्रक्रिया अपनाई जाती है. यह सर्जरी का परंपरागत तरीका है. इसमें अंदर के या बाहर के मस्सों को काटकर निकाल दिया जाता है. इसमें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होगी. जनरल या स्पाइन एनैस्थिसिया दिया जाता है. रिकवरी में दो से तीन हफ्ते का समय लग सकता है. सर्जरी के बाद कुछ दर्द महसूस हो सकता है. सर्जरी के बाद पहली बार मल त्याग में कुछ खून आ सकता है. सर्जरी कामयाब है और कोई रिस्क नहीं है, लेकिन सर्जरी के बाद भी यह जरूरी है कि मरीज अपने लाइफस्टाइल में बदलाव करे, कब्ज से बचे और फाइबर डाइट ले. ऐसा न करने पर करीब 5 फीसदी मामलों में सर्जरी के बाद भी पाइल्स दोबारा हो सकते हैं.
स्टेपलर सर्जरी (Stapler Surgery) स्टेज 3 या 4 के पाइल्स के लिए ही इस तरीके का इस्तेमाल किया जाता है. इस प्रक्रिया में भी जनरल, रीजनल और लोकल एनैस्थिसिया दिया जाता है. अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. प्रोलैप्स्ड पाइल्स (बाहर निकले हुए मस्से) को एक सर्जिकल स्टेपल के जरिये वापस अंदर की ओर भेज दिया जाता है और ब्लड सप्लाई को रोक दिया जाता है जिससे टिश्यू सिकुड़ जाते हैं और बॉडी उन्हें अब्जॉर्ब कर लेती है. इस प्रक्रिया में हेमरॉयरडक्टमी के मुकाबले कम दर्द होता है और रिकवरी में वक्त भी कम लगता है.