रांची: इतिहास में नए भारत का निर्माण करनेवाले चाणक्य इन दिनों देश की मौजूदा राजनीति में बेहद चर्चे में हैं. अगर बात करें झारखण्ड की राजनिति की तो अचानक आए इस बदलाव की बयार ने सबके अनुमान को ध्वस्त कर दिया है. भाजपा सरकार में खाद्य मंत्री रह चुके कद्दावर नेता सरयू राय के बागी तेवर से जहां अंदरूनी सियासत धधक उठी वहीं सीएम को चुनौती देकर सरयू ने कहीं न कहीं रघुवर की साख को हिला दी. बताते चलें कि अविभाजित बिहार में चारा घोटाले से लेकर झारखंड के अन्य कई घोटालों से पर्दा उठाने वाले राय पिछली बार जमशेदपुर पश्चिम क्षेत्र से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री रघुवर दास के कैबिनेट में मंत्री बने. परन्तु इस बार टिकट मिलने में विलंब हुई तो पार्टी की मंशा भांपते हुए मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ताल ठोंक दी.
मुद्दों की संवेदनशीलता ने बनाया सबसे चर्चित हॉट सीट
निर्दलीय चुनाव लड़ने के सरयू के इस फैसले से जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा झारखंड का सबसे हॉट और चर्चित सीट बन गया है. दरअसल, जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र में तीन प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं जिनपर खूब चर्चा हो रही है. सबसे प्रमुख है शहर के बाहरी इलाके में 1700 एकड़ के क्षेत्र में बसे 86 बस्तियों को मालिकाना हक देना. रघुवर दास पिछले सभी चुनावों में इस मुद्दे को उठाते रहे और जब मुख्यमंत्री बने तो वादा नहीं निभा पाए. एक पहल जरूर हुई लेकिन, मालिकाना हक की जगह 30 साल का लीज़ दे दिया गया. इससे कोई संतुष्ट नहीं है.
दूसरा, मुद्दा है परिवारवाद और मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली का. रघुवर दास के परिवार और सगे-संबंधियों को मिल रहे बढ़ावे को इस चुनाव में खूब उछाला जा रहा है. वहीं, पिछले कई वर्षों से शहर की कई बंद पड़ी कंपनियों को फिर से खुलवाने में नाकामी और बढ़ती बेरोजगारी के मसले पर भी रघुवर दास लगातार सवालों के घेरे में हैं. लोगों को उम्मीद हो चली है कि बेदाग और बेबाक सरयू राय इस क्षेत्र से चुनाव जीतते हैं तो जनहित से जुड़े इन मुद्दों पर बात आगे बढ़ेगी.
मुकाबला है दमदार , टक्कर है बराबरी की
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरयू राय ने रघुवर को चुनौती देकर सटीक चाल चली है. एक तरफ रघुवर के खिलाफ दबे आक्रोश को हवा दी तो वहीं दूसरी ओर विरोधी वोट उनके पक्ष में गोलबंद हुए हैं. चूंकि, भाजपा ने उन्हें आधिकारिक रूप से पार्टी से निष्कासित नहीं किया है इसलिए भाजपा के परंपरागत वोटरों की सहानुभूति भी उनके साथ है. अगर राय अपने परंपरागत सीट जमशेदपुर पश्चिम से निर्दलीय चुनाव लड़ते तो भाजपा के कैडर वोट से वंचित होते साथ ही सत्ता विरोधी लहर भी एक फैक्टर होता.
इस हाई-प्रोफाइल सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी गौरव बल्लभ मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, देश की लौहनगरी में विकास के पैमाने पर जनता की सहानुभूति रघुवर के साथ है. शहर की गलियों तक सड़कें बनी है. गोलमुरी के संजय कहते हैं कि रघुवर के खिलाफ लोगों का स्वर तेज हो गया है, जमीनी हकीकत और चुनावी समीकरण बहुत नहीं बदला है. रघुवर के पक्ष में बात करने वाले पिछले चुनाव में उन्हें मिली 70 हजार से अधिक मतों की जीत याद दिलाना नहीं भूलते. बिनोद सिंह कहते हैं टक्कर है लेकिन, रघुवर का वोट बैंक बहुत बड़ा है. हार-जीत तो चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा लेकिन, यह पहला अवसर है जब रघुवर दास को अपने विधानसभा क्षेत्र में पूरी ताकत झोंकनी पड़ी है.
रघुवर की है अग्नि परीक्षा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्पष्ट कर चुके हैं कि भाजपा अगर चुनाव जीतती है तो अगले सीएम भी रघुवर दास ही होंगे. राज्य के पहले ऐसे मुख्यमंत्री जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया और पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री भी है. पूरे प्रदेश की नजर जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा पर है. रघुवर दास भाजपा के स्टार प्रचारक भी हैं. बैनर-पोस्टर में मोदी के बाद दूसरी बड़ी तस्वीर उन्हीं की नजर आती है. अपने ही विधानसभा क्षेत्र में ही घिर जाने की चर्चा पूरे प्रदेश में है. ऐसे में रघुवर को न सिर्फ अपनी बल्कि पार्टी की भी साख बचानी है. अब देखना दिलचस्प होगा की ये ऊंट आखिर किस करवट बैठता है.