रांचीः भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा 2019 में सिंहभूम लोकसभा चुनाव हराने के बाद अब विधानसभा चुनाव में चक्रधरपुर विधानसभा सीट से मैदान में है. गिलुवा इस निर्वाचन क्षेत्र का पहले भी प्रतिनिधित्व कर चुके है, लेकिन इस बार उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुखराम उरांव और आजसू पार्टी के रामलाल मुंडा से कड़ी चुनौती मिल रही है.
पश्चिमी सिंहभूम जिले के पांच विधानसभा क्षेत्रों में चक्रधरपुर विधानसभा सबसे हॉट सीट बन गया है और यह सीट भाजपा, झामुमो, आजसू के लिए प्रतिष्ठा का सीट बन गया है.
भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मण गिलुवा के पक्ष में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह चुनावी सभा कर लौट चुके है, वहीं यहां से झामुमो ने अपने सीटिंग विधायक शशि भूषण सामड़ का टिकट काट कर पूर्व विधायक सुखराम उरांव को उम्मीदवार बनाया है. जिससे नाराज शशिभूषण सामड़ ने झारखंड विकास मोर्चा का दामन थाम लिया.
वहीं आजसू पार्टी ने इलाके में पिछले कई महीनों से सक्रिय सामाजिक कार्यकर्त्ता रामलाल मुंडा को उम्मीदवार बनाया है. आजसू पार्टी के अध्यक्ष सुदेश महतो ने कहा कि भाजपा से सीटों के बंटवारे को लेकर उन्होंने चक्रधरपुर समेत अन्य कुछ सीटें मांगी थी, लेकिन भाजपा ने इसे देने से इंकार कर दिया, इस कारण गठबंधन पर बातचीत टूट गयी.
वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव के पहले सुखराम उरांव भाजपा में शामिल हुए थे और भाजपा ने उन्हें टिकट भी दिया था. मगर एक अपराधिक मामलों में सजायाप्ता होने के कारण नामांकन दाखिल करने के बावजूद वह चुनाव नहीं लड़ पाए थे और उनकी जगह उनकी पत्नी नवमी उरांव को भाजपा ने टिकट दिया था. लेकिन झामुमो ने पूर्व में भाजपा नेता रहे शशि भूषण सामड़ को टिकट दिया और वे भाजपा प्रत्याशी नवमी में उरांव को पराजित कर चक्रधरपुर सीट से जीतकर विधायक बने थे.
वहीं आजसू प्रत्याशी रामलाल मुंडा जो पूर्व में झामुमो में थे और चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन 2014 में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. इसके बावजूद उन्होंने चुनाव लड़ा हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद राम लाल मुंडा आजसू में शामिल हो गए और 5 वर्षों तक पूरे विधानसभा में सक्रिय रहे.
राम लाल मुंडा जिला परिषद सदस्य भी रह चुके हैं उनकी पत्नी भूमिका मुंडा वर्तमान में जिला परिषद सदस्य है. ग्रामीण क्षेत्र में राम लाल मुंडा की अच्छी पकड़ है.
रेलवे को सबसे अधिक राजस्व देने वाले डिविजनों में से एक चक्रधरपुर में भाजपा और गिलुवा की जीत में संघ की भूमिका काफी अहम रही है. बिहार-झारखंड में भाजपा के संस्थापकों में से एक रुद्र प्रताप सिंह के समय से ही यह संघ की गतिविधयों का केंद्र रहा है. लेकिन, इस बार संघ और गिलुवा के बीच थोड़ी दूरी नजर आती है. वजह, गिलुवा की कार्यप्रणाली. हालांकि, गिलुवा पार्टी के कैडर वोट को लेकर आश्वस्त नजर आते हैं तो भरोसा है कि केंद्र और राज्य सरकारों के कामकाज का फायदा भी उन्हें मिलेगा. पिछड़े आदिवासी क्षेत्रों तक सड़कें बनी हैं तो पेयजल की समस्या के हल के लिए परियोजनाएं प्रगति पर हैं.