द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना के लिए रावण को लोग राक्षस नहीं,राजा व महान पंडित मानते हैं
रांची:- उत्तर भारत के विभिन्न इलाकों में बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में विजयादशमी पर रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले फूंके जाते है. कोरोना संक्रमणकाल में इस वर्ष झारखंड समेत देश के कई हिस्सों में रावण दहन को लेकर किसी भी तरह के बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम पर रोक लगायी है, लेकिन इस कारण राजधानी रांची समेत राज्य के कई हिस्सों में रावण दहन कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो रहा है. परंतु देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथधाम नगर में विजयदशमी के मौके पर रावण दहन की कभी परंपरा नहीं रही है.
मान्यता के अनुसार विजयादशमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम ने बुराई के प्रतिक राक्षस राज रावण का वध किया था. उसी की याद में प्रत्येक वर्ष लोग दशहरे पर रावण के पुतले फूंक उत्सव मानते है,किन्तु बाबा धाम देवघर में ऐसा कतई नहीं होता आज भी रावण यहाँ के लोगो के लिए लए आदरणीय ही है. इसलिए इनके पुतले दशहरे पर नहीं जलाये जाते. हालांकि दशाहरे पर मां माँ दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन होता है और मेले लगते है लोग उत्सव मानते है.
बाबा धाम के राज पुरोहित माया शंकर शास्त्री ने बताया कि बैद्यनाथ धाम देवघर में रावण का पुतला दहन नहीं होता. यहां दशहरे पर रावण के पुतले नहीं जलाये जाते. रावण को लोग यहां राक्षस नहीं बल्कि राजा और महान पंडित मानते है. उन्होंने बताया कि रावण की वजह से ही द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना देवघर में हुई है और उन्होंने ही विश्वकर्मा से बाबा मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर के शिखर में चन्द्रकांत मणि लगाया. शिवगंगा सरोवर की भी उत्पत्ति की. शिव तांडव श्त्रोतम और महीधर संहिता आदि की रचना करने वाले लंका पति रावन बाबाधाम के लोगो के लिए राजा सामान है.
बाबाधाम धर्मरक्षिणी सभा के अध्यक्ष का कहना है कि बाबा मंदिर का नाम भी रावणेश्वर बैद्यनाथ ही है. लोग इन्हें महान विद्वान और प्रकांड पंडित मानते है. इसलिए दशहरा पर इनके पुतले फूंके नहीं जाते तथा इनके द्वारा स्थापित पूजा पद्धति ही यहाँ आज तक प्रचलित है.