रांची: आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि झारखंड में बजट का आकार साल दर साल बढ़ता रहा है. वर्ष 2001-02 में 4800 करोड़ यपये का बजट पेश किया गया था जो 2019-20 में बढ़कर 85,429 करोड़ रूपये का हो गया. बजट की बढ़ती धन राशियां बढ़ते ग्रोथ में तब्दील नहीं हो पाई इस पर हमें आश्चर्य हो सकता है परंतु यह बिल्कुल सच है.
फरवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में बजट प्रस्तावित है. नयी सरकार के नये बजट को लेकर जनता में उमंग भी है और उत्साह भी. बजट के आकार और विकास दर पर पिछले तीन बजट भाषणों के नजरिये से विकास दर की सच्चाई को देखने का यह प्रयास आज प्रासंगिक होगा क्योंकि हम जल्द ही राज्य के आगामी बजट के रूप रंग और स्वरूप से रूबरू होने वाले हैं.
प्रचलित मूल्य पर और स्थिर मूल्य पर वर्ष 2017-18 की तुलना में वर्ष 2019-20 में राज्य के सकल घरेलू उत्पादन के वृद्धि दर में गिरावट दिखालायी पड़ रही है. ये वो आकड़ें हैं जिनको वित्तमंत्री (मुख्यमंत्री) के सदन में पढ़ा है और बजट दस्तावेज में प्रस्तुत भी किया है. बजट का आकार भी वित्त वर्ष 2017, 2018 और 2019 में क्रमशः 75672 करोड़ रूपये, 80200 करोड़ रूपये और 85429 करोड़ रूपये का रहा है. जो 6 से 7 प्रतिशत की दर से हर साल बढ़ता रहा है.
राज्य में अपेक्षित विकास न हो पाने का बहुचर्चित कारण राजनीतिक अस्थिरता को बताया जाता रहा है परंतु यह मिथक भी पिछले बार की स्थिर सरकार में टूटटा नजर आया जब 15वें वित्त आयोग में पत्र लिखकर राज्य के विकास के आंकड़ों को उद्घृत करते हुये राज्य सरकार से पूछा कि राजनीतिक स्थिरता को विकास में क्यों नही बदला जा सका.
झारखंड में आय और रोजगार मेंं प्रक्षेत्रवार (सेक्टरवाईज) भारी असंतुलन है जिसका कारण यह है कि कृषि में, राज्य के आधे से ज्यादा (50 प्रतिशत) श्रमिक जीविका अर्जन में लगे हुए है. परन्तु राज्य की जीडीपी में कृषि सेक्टर का योगदान बमुश्किल 16 प्रतिशत ही है जबकि इंडस्ट्री में राज्य के कुल श्रम बल का मात्र 10 प्रतिशत काम में लगा है परंतु इस सेक्टर का योगदान राज्य की जीडीपी में 34 प्रतिशत है. यानि साफ दिख रहा है कि कृषि में लगे लोगों की माली हालात ठीक नहीं है और विपन्नता में जी रहे है. जबकि इंडस्ट्री में लगे लोग अपेक्षाकृत खुशहाल है परंतु विडंबना यह है कि इस सेक्टर में ज्यादा श्रम बल को लगा पाने की गुंजाईस भी नहीं हैं.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का एक बयान आया था हाल के दिनों में जिसमें उन्होंने दिल्ली की तर्ज पर राज्य में शिक्षा एवं स्वास्थ्य योजनाओं को लागू करने की बात कही थी. उनके इस सकारात्मक बयान से जनता में उत्सुकता है कि सरकार का खजाना खाली है के चिल्ला-पों के बावजूद शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रक्षेत्रों में न सिर्फ वित्तीय प्रावधान बढ़ेगें बल्कि ऐक्शन भी आगामी दिनों में देखने को मिलेंगे. उम्मीद है कि राज्य के आगामी बजट 2020-21 में सत्तारूढ़ दल के घोषणा पत्र के किये गये वादों के साथ राज्यपाल के अभिभाषण में शामिल विषयों की भी झलक दिखलायी पड़ेगी.