——-प्लास्टिक—-
जगते प्लास्टिक सोते प्लास्टिक।
दिन में प्लास्टिक रात में प्लास्टिक।
जहर फैला रही है प्लास्टिक।
धुंआ धुंआ बिखरा रही है।
धुआंधार प्लास्टिक।
जीते प्लास्टिक मरते प्लास्टिक।
सांसे रोक रही है प्लास्टिक
मरती है ना गलती है पर असर दिखा रही प्लास्टिक।
भूमंडल में कहर मचा रहा प्लास्टिक ।
बिना मोल कैंसर दे जाता खबर न देता किसी को
अवरुद्ध करता सांसों को जो उसप्रदूषण का नाम प्लास्टिक।
बचो प्रकृति के कहर से अब सब
पर्यावरण स्वच्छ करके।
बचना चाहो यदि सब इसके बुरे परिणामों से।
वातावरण शुद्ध करो अपना और शुद्ध करो
आवरण भी।
डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
स्वरचित व मौलिक रचना